Saturday, March 12, 2011

शिवसेना ने लगाया दलितो पर दांव, मनसे के मन में समाये मुसलमान

महाराष्ट्र की हिन्दुत्ववादी राजनीति का यह नया समीकरण है. शिवसेना के मुखिया बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पांच साल पूरे हो गये. 9 मार्च को मुंबई में इस मौके पर मनसे मुखिया राज ठाकरे ने एकला चलो का नारा दिया और घोषणा की कि आगामी महानगर पालिका में वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी. क्योंकि आनेवाले कुछ सालों तक सिर्फ महानगर पालिकाओं और जिला परिषदों के चुनाव ही होनेवाले हैं इसलिए राज ठाकरे का संदेश है कि वे अकेले ही मैदान में उतरेंगे.
राज ठाकरे का यह उत्साह उनके बढ़ते शहरी मुस्लिम वोट बैंक के कारण है. 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाने के साथ ही राज ठाकरे ने हिन्दुत्ववादी राजनीति को अपनाने की बजाय सेकुलर राजनीति की ओर अपना रुख किया. जो लोग राज ठाकरे में चाचा बाल ठाकरे की हिन्दुत्ववादी राजनीति का भविष्य देख रहे थे वे आज भी राज ठाकरे की इस नीति का बहुत समर्थन नहीं करते हैं लेकिन राज ठाकरे की रणनीति ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करने की है. इसलिए राज ठाकरे मुंबई में परप्रांतियों का मुद्दा तो उठाते हैं लेकिन हिन्दूवादी राजनीति से अपने आप को दूर ही रखते हैं. इसका कारण है.
राज ठाकरे का मुसलमानों की तरफ झुकाव का प्रमुख कारण मुंबई, ठाणे, कल्याण में मौजूद मुस्लिम आबादी है. 2001 की जनगणना के अनुसार अकेले मुंबई में तेईस लाख मुसलमान बसते हैं. निश्चित रूप से आज यह संख्या इससे कहीं अधिक होगी. इसी बात को ध्यान में रखते हुए राज ठाकरे ने मनसे का दरवाजा मुसलमानों के लिए खोल दिया. दस हजार से भी अधिक मुसलमान मनसे में बतौर पार्टी सदस्य रजिस्टर्ड हैं. मनसे मुखिया राज ठाकरे की अपने जन्मदिवसों पर कुरान की प्रतियां उपहार में देकर मुसलमानों को अपना बिछड़ा भाई साबित करने का कोई मौका नहीं चूकते हैं.
लेकिन राजनीति की नयी इबारत केवल राज ठाकरे ही नहीं लिख रहे हैं. शिवसेना भी हिन्दुत्ववादी राजनीति से आगे निकलकर अब दलित वोटबैंक को अपने साथ मिलाने की कोशिश कर रही है. इन कोशिशों की पहली झलक मिली 23 जनवरी 11 को जब बाल ठाकरे के जन्मदिन पर रामदास आठवले उनको बधाई देने पहुंचे. इसके बाद ही महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चाओं का माहौल गर्म हुआ कि क्या रामदास आठवले महाराष्ट्र की राजनीति में कोई नया शास्त्र गढ़ने जा रहे हैं. इस आशंका को तब और बल मिला जब मुंबई में ही एक संगठन द्वारा सेमिनार आयोजित करके इस बात को साबित करने की कोशिश की गयी कि कैसे शिवसेना ही दलितों की असली उद्धारक हैं. यह भी बताया गया कि बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर को राजनीति में आने की प्रेरणा किसी और ने नहीं बल्कि प्रबोधनकार ठाकरे ने दी जो कि बाल ठाकरे के पिता हैं. इन अफवाहों को 8 मार्च को विराम लग गया जब रामदास आठवले ने घोषणा कर दी कि वे शिवसेना प्रमुख का सम्मान करते हैं और महाराष्ट्र में दलित उत्थान के लिए शिवेसना के साथ जाने में उन्हें कोई परहेज नहीं है.
ठाकरे परिवार द्वारा संचालित महाराष्ट्र की राजनीति का यह नया समीकरण हैं. कांग्रेस और शरद पवार के पैसे से अस्तित्व में आयी मनसे अपना स्थाई आधार बनाने के लिए अब मराठियों के साथ मुसलमानों को अपना स्थाई वोट बैंक बनाने में जुटी है तो शिवसेना भाजपा के साथ चौड़ी होती राजनीतिक खाई को दलित नेता रामदास आठवले के साथ मिलकर पाटना चाहती है. महाराष्ट्र में 9 प्रतिशत दलित वोट है जिसपर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती भी झपट्टा मारना चाहती हैं. मायावती से महाराष्ट्र के दलितों को बचाने के लिए रामदास आठवले के लिए शिवसेना कांग्रेस से बेहतर विकल्प है क्योंकि आठवले इतना तो समझ ही गये हैं कि कांग्रेस उनका इस्तेमाल भले ही कर ले लेकिन उन्हें महाराष्ट्र का मायावती कभी नहीं बनने देगा. मुसलमानों के प्रति उदार होती भाजपा के लिए शिवेसना से ज्यादा सहोदर मनसे नजर आने लगी है. इसलिए भाजपा भी इस नये समीकरण को सरंजाम हो जाने देगी.
मनसे के उदय के बाद महाराष्ट्र की हिन्दुत्ववादी राजनीति का यही नया स्वरूप है जो आगामी सालों में और निखार पर आयेगा.

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