Saturday, March 12, 2011

कविता का कोई विकल्प नहीं -‘होरी’

लोगों की भावनाओं को छूने और उनके विचारों को आंदोलित करने वाली कविता भले ही आज दुनिया भर में छोटे से वर्ग तक सिमटती जा रही है लेकिन समीक्षकों के अनुसार साहित्य की इस विधा का कोई विकल्प नहीं हो सकता । प्रस्तुत है कविता की भूमिका,महत्व व लोकप्रियता पर वरिष्ठ साहित्यकार कवि एवं प्रशासनिक अधिकारी वर्तमान में अपर आयुक्त आजमगढ़ राजकुमार सचान ‘होरी’ से रिजवान चंचल द्वारा का गई वार्ता के प्रमुख अंश ।
सवाल- होरी जी कविता का पाठक वर्ग कम होता जा रहा है ऐसा क्यों ?

जवाब- देखिये अच्छे काव्य को समाज के हर वर्ग तक लाने की जरूरत है कविता के पाठक को साहित्य में सहृदय कहा जाता है और यह वर्ग आज से नहीं कालिदास के समय से कम संख्या में ही रहा है। कविता के पाठकों में उस समय वृद्धि होती है जब कविता किसी आंदोलन से जुड़ जाती है। आजादी के आंदोलन के समय यही स्थिति उत्पन्न हुई और कविता लोगों से सीधे जुड़ गई। लेकिन इतिहास में ऐसे दौर अधिक समय तक नहीं चलते। आज हमारा समाज आंदोलन विहीन है इसलिए कविता भी एक सीमित वर्ग तक सिमट कर रह गई है।

सवाल- आधुनिक दौर के शीर्ष कवियों की रचनाओं को व उनके नाम तक से अधिकतर लोगों के परिचित नहीं होने के बारे में आपका क्या कहना है?
जवाब- श्री सचान ने कहा कि ऐसा नहीं है कवियों और उनकी रचनाओं को जानने वाले लोग छोटे-छोटे कस्बों तक में मिल जाते हैं भले ही उनकी संख्या कम हो। श्री सचान ने कहा कि जिस बाजारवाद की चर्चा आज समाज में प्रासंगिक हो उठी है कविता में आज से दो दशक पहले ही इसके बारे में चिंताएं प्रकट की जाने लगी थीं। उन्होंने कहा कि पुरानी पीढ़ी के कवियों के साथ भी यही स्थिति होती थी लेकिन चूंकि उनकी रचनाएं पाठ्यक्रमों में शामिल हैं इसलिए लोग उनके नामों से भलीभांति परिचित हैं। उन्होंने कहा कि बहुतों का यह मानना काफी हद तक सही है कि आज की कविता न तो उनकी भाषा में लिखी जा रही है न ही समसामयिक मुद्दे उठा रही है तथा संप्रेषणीयता का भी अभाव है।

सवाल- वर्तमान में कविता के दो वर्ग हैं धनाड्य वर्ग जिसकी कविता पत्र पत्रिकाओं में छाई हुई है व काव्य पुस्तकों का रूप लिये हुये है दूसरा वर्ग वह जिनकी रचनायें एक सीमित दायरे में ही पढ़ी और सराही जाती है तथा विपन्नता के चलते वे न तो ज्यादा छप पाते है और न ही काव्य पुस्तक ही छपवा पाते हैं आप का क्या दृष्टिकोण है?
जवाब- जबाब में श्री होरी ने कहा कि पूर्व से ही यहां वाचिक कविता की लंबी परंपरा रही है। लेकिन आज इस परंपरा में भी काफी हद तक विकृतियां आई हैं मंचों पर लोग हास्य के नाम पर फूहड़ कविताएं और गीत सुना रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले आम स्कूल कालेजों में कवि सम्मेलनों का आयोजन होता था लेकिन आज इनका आयोजन बेहद महंगा हो जाने के कारण सिर्फ धनी वर्ग ही इन्हें आयोजित करवा पाता है यह बात सही है किन्तु धनी वर्ग की साहित्य में खास रूचि नहीं होती और आयोजकों की रूचि के अनुसार कवि सम्मेलनों में फूहड़ कविताओं का बोलबाला रहता है। उन्होंने कहा कि पत्र पत्रिकाओं रेडियो और टेलीविजन में कविता को अधिक स्थान देकर कविता को उसका सही स्थान दिलाया जा सकता है।

सवाल- महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर रहते हुए भी होरी जी आप लेखन का समय कैसे और कब निकाल पाते है ?
जवाब- अक्सर मैं लेखन का कार्य यात्राओं में व गाड़ी में चलते समय करता रहता हूं मै समय को अनर्गल वार्ताओं, व्यक्गित बैठकों में जाया कतई नही करता। प्रशासनिक कार्य दायित्वों के निपटाने के बाद जो भी समय मिलता है वह साहित्य सृजन ही देता हूं।

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