Saturday, March 12, 2011

महादलित का माया जाल

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फिर से महादलित का राग छेड़ दिया है. चुनाव की सुगबुगाहट के बीच नीतीश ने उन्हें भरोसा दिलाया, भरोसा करने को कहा. नीतीश कुमार ने ताजा लुभावने वादे में नान मैट्रिक को विकास मित्र बनाने की घोषणा कर दी है. लगे हाथ भाजपा के कोटे से उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने अपने पार्टी अध्यक्ष का राग दोहराते हुए हर महादलित को बीपीएल सूची में शामिल करने को कहा है. अब जरा पीछे चलते हैं. बाबा साहेब डाँ. भीम राव अंबेडकर ने भारत की ब्राह्मणी व्यवस्था के शिकार भारतीय समाज की 10743 जातियों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछडी जातियाँ और सवर्ण जातियों में वर्गीकृत किया. यह बात मनुवाद में विश्वास करने वालों को रास नहीं आया और वे सतत प्रयास करते रहे हैं कि इन वर्गों को तोड कर पुनः छोटी-छोटी जातियों में विभक्त कर दिया जाए. सबसे पहले उन्होंने पिछड़ी जातियों को अति पिछडी जाति में तोड़ा. बाद में बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने बिहार की 23 में से 21 जातियों को महादलित और 2 जातियों चमार और दुसाध को दलित के रूप में घोषित किया. यह एक प्रकार से अनुसूचित जाति की बजाय दलित और महादलित को स्थापित करने की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है.
वास्तव में ब्राह्मणवाद को तभी तक फायदा मिलेगा जब तक भारतीय समाज छोटी-छोटी जातियों में बँटा रहेगा. भारतीय संविधान ने इन जातियों को तोड़ कर वर्गों में एकीकृत करने का काम किया है. अतः भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा संविधान की समीक्षा की वकालत की गई तथा नागपुर में नए संविधान का लोकार्पण जैसे निंदनीय काम किए गए. बिहार सरकार द्वारा आज कल गाँधी जी की उक्ति “ समाज की अंतिम पंक्ति में खडा व्यक्ति के चेहरे पर खुशहाली नहीं होगी तो देश खुशहाल नहीं होगा” को चरितार्थ करने और अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के चेहरे पर खुशहाली लाने नाम पर अनुसूचित जाति को दलित और महादलित के रूप में मान्यता दिलाने के लिए राज्य महादलित आयोग का गठन किया गया है. भारत सरकार द्वारा वैसे सभी शब्दों पर पाबंदी लगा दी गई है, जिससे नीचता का बोध होता है. किंतु बिहार सरकार के दस्तावेजों में महादलित और दलित शब्दों का निर्लज्जता के साथ प्रयोग किए जाने की खबर है.

इ.वी.चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश व अन्य के एक महत्वपूर्ण वाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह नियमन दिया गया है कि अनुसूचित जाति/जन जाति की सूची जो महामहिम राष्ट्र्पति के आदेश द्वारा अधिसूचित है, उसमें उपविभाजन या सूक्ष्म विभाजन नहीं किया जा सकता. इसमें संशोधन केवल संसद द्वारा विधि बनाकर किया जा सकता है. उपर्युक्त तथ्य की पुष्टि माननीय उच्च न्यायालय, पटना द्वारा भी की गई है. किंतु सरकार द्वारा माननीय उच्च न्यायालय को गुमराह करते हुए कहा गया कि राज्य महादलित आयोग का गठन किया गया है. विचारणीय पहलू है कि उपर्युक्त तथ्यों की जानकारी के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अस्तित्व में है. राज्यों में भी राज्य अनुसूचित जाति आयोग गठन करने की व्यवस्था दी गई है. बिहार में दशकों से राज्य अनुसूचित जाति आयोग का गठन नहीं किया गया और इसका एक मात्र कारण है कि बिहार की पूर्व और वर्तमान सरकारों की यह सोच रही कि यदि राज्य अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया जाता है तो उसमें काँग्रेस पार्टी अथवा केंद्र में काबिज सरकार के लोगों को स्थान देना होगा. अतः अनुसूचित जाति आयोग नहीं गठित किया गया. माना जा सकता है कि वर्तमान जद(यू) और भाजपा सरकार द्वारा राज्य महादलित आयोग के गठन के पीछे वास्तविक उद्देश्य निम्नलिखित है:

•अनुसूचित जातियों(महादलितों) को बोध कराना कि राजद की सरकार ने 15वर्षो में उनके लिए जो काम नहीं की, वह काम वर्तमान सरकार द्वारा किया जा रहा है.
•अनुसूचित जातियों में जनसंख्या के आधार पर बडी जाति चमार और दुसाध जिनकी प्रतिबद्धता क्रमशः बहुजन समाज पार्टी और लोक जन शक्ति पार्टी के प्रति है, उनको विकास की मुख्य धारा से अलग करना.
•अनुसूचित जाति की 21 जातियाँ (महादलितों) जो राजनीतिक प्रतिबद्ध नहीं हैं उनके वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करना.
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि राज्य महादलित आयोग एक जाँच आयोग है. इस बात की पुष्टि श्री नीतिश कुमार द्वारा अनेक मंचों पर की गई है. यहाँ सोचने की बात है कि यदि यह जाँच आयोग है तो क्या इसके सदस्यों और अध्यक्ष की योग्यता निर्धारित की गई है? क्या किसी जाँच आयोग के सभी सदस्य राजनीतिक कार्यकर्ता हो सकते हैं? क्या किसी जाँच आयोग का प्रतिवेदन प्रस्तुति के पहले यह निष्कर्ष दिया जा सकता है कि कौन दलित हैं और कौन महादलित?
उपर्युक्त तथ्यों का सूक्ष्म विश्लेषण करने की आवश्यकता है. सन् 2001 की जनगणना के मुताबिक बिहार की कुल जनसंख्या 8,29,98,509 में से कुल 1,30,48,608 अनुसूचित जातियों की जनसंख्या हैं. यह कुल जनसंख्या का 15.7 प्रतिशत हैं. अनुसूचित जातियों में कुल 23 जातियों को शामिल किया गया हैं. इन 23 जातियों में चमार जाति के लोगों की जनसंख्या 40 लाख 90 हजार 70 हैं, जो अनुसूचित जातियों की कुल संख्या का 31.3 प्रतिशत है. दुसाध जाति की संख्या 40 लाख 29 हजार 411 है जो 30.9 प्रतिशत होता है. यानि 21 जातियों की कुल आबादी मात्र 37.8 प्रतिशत है. वर्तमान सरकार द्वारा 21 जातियों को महादलित के रुप में चिन्हित किया गया है. सरकार का तर्क है कि ये जातियां विकास के मामले में पिछड गयीं हैं. सरकार इनका उत्थान करना चाहती है. यह एक स्वागत योग्य कदम है. आजादी के 62 वर्ष बीत जाने के बाद भी बिहार में आरक्षित जगहों का मात्र 7% भरा जा सका है.

सरकार की मंशा यदि स्पष्ट है तो सभी बैकलाग सीटों को अनुसूचित जाति की 21 जातियों से भर दी जाए, इसका सभी के द्वारा स्वागत किया जाएगा. लेकिन सरकार द्वारा इस दिशा में कोई पहल नहीं की जा रही है. अलबत्ता सरकार ने मुसहरों के कल्याणार्थ चुहों के बाज़ारीकरण हेतु परियोजना प्रस्ताव अवश्य तैयार की है और जब इसका विरोध मुसहर नेताओं द्वारा की गई तो सरकार ने एक सिरे से ऐसी किसी योजना से इंकार कर दिया. बिहार का राज्य महादलित आयोग जिसके सभी सदस्य और अध्यक्ष राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, उनके जाँच का प्रतिवेदन ज्यादा महत्वपूर्ण है या भारत के जनगणना महानिबंधक का प्रतिवेदन. कौन ज्यादा विश्वसनीय है. जनगणना महानिबंधक का प्रतिवेदन 2001 के निम्नलिखित आंकडों पर जरा गौर फरमाएं.

साक्षरता का प्रतिशत:
धोबी 43.9
पासी 40.6
दुसाध 33.0
चमार 32.0
भुईया 13.3
मुसहर 9.0


शिक्षा का प्रतिशत:
भुइया
बिना शिक्षा साक्षर 15.3
प्राथमिक से नीचे 44.1
प्राथमिक 26.5
मध्य 7.4
10, 10+ 26
तकनीकी- 00
स्नातक/स्नातकोतर 0.6
चमार
बिना शिक्षा साक्षर 5.9
प्राथमिक से नीचे33.6
प्राथमिक28.5
मध्य 13.4
10, 10+15
तकनीकी 0.1
स्नातक/स्नातकोतर 3.5
धोबी
शिक्षा बिना साक्षर 4.5
प्राथमिक से नीचे 28.3
प्राथमिक २7
मध्य 14.9
10, 10+2 19.7
तकनीकी 0.2
स्नातक/स्नातकोतर 5.4
दुसाध
शिक्षा बिना साक्षर 6.32
प्राथमिक से नीचे 28.5
प्राथमिक 13.7
मध्य 16.1
10, 10+2
तकनीकी 0.1
स्नातक/स्नातकोतर 3.5
मुसहर
शिक्षा बिना साक्षर 15.3
प्राथमिक से नीचे 44
प्राथमिक 27.8
मध्य 6.7
10, 10+2 5.5
तकनीकी- 00
स्नातक/स्नातकोतर 0.8
पासी
शिक्षा बिना साक्षर 5.7
प्राथमिक से नीचे 30
प्राथमिक 27.1
मध्य 13.4
10, 10+2- 17.9
तकनीकी 0.2
स्नातक/स्नातकोतर 5.6


विद्यालय जाने का प्रतिशत:
धोबी 45.6
पासी 39.4
दुसाध 34.1
चमार 33.7
भुईया 15.1
मुसहर 9.8
स्रोत: जनगणना रिपोर्ट 2001.

महादलितों में शामिल कुछ जातियाँ जिनकी आबादी कम है वे शहरों में रहती हैं और आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ उनको मिला है. महिला-पुरूष दोंनों ही नौकरी करते हैं. अतः कहा जा सकता है कि विकास के मामले में जो ज्यादा आगे है वे महादलित की श्रेणी में शामिल हैं. भारतीय गणतंत्र के संविधान में पिछड़ापन का आधार सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ापन को माना गया है. क्या चमार एवं दुसाध जाति से संबंधित लोगों का सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछडापन समाप्त हो गया है? यदि बिहार सरकार आर्थिक पिछडापन को पिछड़ापन का आधार मानती है, जो कि संवैधानिक नहीं है, तो महादलित की सूची में सम्मिलित जातियों की स्थिति भारत सरकार के सन् 2001 की जनगणना प्रतिवेदन से भिन्न क्यों है? मुझे रामायण की वह पंक्ति याद है जिसमें कहा गया है कि समर्थवान का कोई दोष नहीं होता है. सरकार समर्थों की होती है. उनकी नज़र में जो सही प्रतीत हो वही सही होता है. जब श्री लालू प्रसाद की सरकार थी तब पंचायत का चुनाव हुआ. मुखिया, सरपंच, प्रमुख, ज़िला परिषद अध्यक्ष सब एकल था. लिहाज़ा आरक्षण नहीं मिला. जब श्री नीतीश कुमार जी की सरकार बनी वे सभी सीटें एकल नहीं रहीं और उनमें आरक्षण लागू हो गया. यानि जो समर्थ हैं वही सही है. नितीश कुमार बिहार में अच्छा काम कर रहे हैं. वो दुबारा सत्ता में आएं हर आम आदमी की राय शायद यही होगी. लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए जातियों को बांटना ठीक नहीं है.

लेखक एम.ए.(द्वय)शोधछात्र और सामाजिक चिंतक हैं.

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