आदरणीय मित्रो और दोस्तो,
जहां तक सवाल है आज के दिन का, एक ऐसा अवसर है कि आज से 70 साल बाद भी हम ‘त्रिवेणी संघ’ को याद करते हैं। 10-12 साल पहले जब हमलोगों ने काम करना शुरू किया था, तो त्रिवेणी संघ के बारे में किताबों में कुछ नहीं था। इतिहास की कुछ किताबों में सिर्फ तीन-चार लाइनें लिखी हुई मिली होंगी। अब समझ लीजिए, क्यों जरूरत थी ‘त्रिवेणी संघ’ पर कुछ काम करने की? किताबों में हमने देखा, सिर्फ तीन लाइन लिखी हुई रहती थी कि ‘यह पिछड़ों का संगठन था, जिसे सिर्फ तीन जातियों ने बनाया था’। आप समझ सकते हैं कि अगर इतना उस पीरियड के किसी संगठन के बारे में कहा जाएगा, तो उसका अर्थ कुछ दूसरा हो जाएगा। सोचा जाता है कि यह जातिवादी संगठन था लेकिन ऐसा नहीं था। वस्तुतः हमलोगों ने काम करने के दौरान देखा कि इसमें बहुत सारी पिछड़ी और दलित जातियां भी थीं। तब इस संगठन की एक जरूरत थी। वो जरूरत इसलिए थी कि लोग बेगार खट रहे थे। प्रताड़ित हो रहे थे। विधानसभाओं या पंचायतों में टिकट नहीं मिल पाता था। पढ़ने के दौरान ही हमने देखा कि 1917 में सुधार की बात चली तो एक चीफ सेक्रेटरी हुआ करते थे, बिहार के, उन्होंने कहा कि मैं समझ नहीं पाता हूं कि जो समुदाय ‘यादव’ और ‘दुसाधों’ का होता है, उसका चुना हुआ प्रतिनिधि ‘वैश्य’ कैसे हो सकता है? आप समझ सकते हैं, ऐसी तब की परिस्थितियां थीं। इसलिए जब हम ‘त्रिवेणी संघ’ को याद करते हैं, तो उस पीरियड में आपको जानना होगा कि ‘जनेऊ’ आंदोलन भी चला था। हम लोग गांव में इस पर काम करने गये तो लोग कहते कि उनके पुरखे कहते थे कि कौन ‘सिंह’ है? ‘नयका’ कि ‘पुरनका’? आप समझ सकते हैं इस तरह देखा जाता था।
वस्तुतः समय काल के बाद उस संगठन का उसी रूप में रिवाइवल हो सकता है क्या? आज सवाल यहां है! देखिए यह समाज और ये दुनिया रोज-रोज बदलती रहती है। आज के दिन में देखिए कि जिस तरह का उत्पीड़न ‘त्रिवेणी संघ’ के जमाने में था, वैसा नहीं है। आज वस्तुतः उस तरह, उसी रूप में नहीं है। आज देखिए, हमारी सोसायटी का राज करने वाला समुदाय बदल चुका है। कम से कम बीस साल में तो आप कह ही सकते हैं और उसके पहले भी 60 के दशक और 2000 तक में देखिएगा, बीच-बीच में ऐसा मौका आता रहा है कि पिछड़े क्या, दलित भी इस स्टेट में मुख्यमंत्री होते रहे हैं। बेसिक बात अब मैं समझता हूं कि सोसायटी में सबसे ज्यादा जरूरी है कि गरीब लोगों का ‘इकॉनोमिक इम्पावरमेंट’ कैसे हो? और वो हो नहीं रहा है! पिछले 40 सालों में देखिएगा कि सबसे ज्यादा गरीब लोग इस बिहार में ही बसते हैं और सबसे ज्यादा हालत खराब है खेत मजदूरों की। खेत मजदूरों के 78 प्रतिशत से 80 प्रतिशत हिस्से की बेहद हालत दयनीय है। ये जो जनगणना होती है, खासकर एससी-एसटी की, उसी का आंकड़ा मैं बोल रहा हूं। तो आज के दिन में सबसे जरूरी है कि ‘इकॉनोमिक इंपावरमेंट’ के लिए, सोसायटी के लिए, ‘स्टेट पावर’ काम करे। वो किसी की भी सरकार हो सकती है।
आप देख रहे हैं कि बीस साल में क्या बदला? 10 जातियां केवल हैं, जो स्टेट पावर पर काबिज होती हैं। जो राज करती हैं। आप किसी भी पार्टी में उठा कर देख लीजिए। अभी वीरेंद्र यादव ने 243 विधायकों की जाति की सूची निकाली है। सिर्फ 10 जातियां! पिछले 50 सालों में इस स्टेट में यही राज कर रही हैं। गरीबों की हालत है कि वे जहां पहले थे, वहीं आज भी हैं। सिर्फ ‘टेन परसेंट’ लोगों का, जो 10 प्रतिशत रिच क्लास है, उनके पास धन-संपत्ति बढ़ती जा रही है। आपको आश्चर्य होगा कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 278 रुपये आमदनी मासिक पर लोग गुजारा करते हैं। आप शहर में रह के 5-10 हजार की बात करते हैं, आप कल्पना कीजिए कि वो आदमी कैसे गुजारा करेगा? वो दाल खा सकता है क्या? तो बेसिक बात है कि आज जब आप त्रिवेणी संघ की बात करते हैं, तो सबसे ‘लोअर स्ट्राटा’ के लोगों के बारे में कितना सोचते हैं? यह सबसे अहम बात है, नहीं तो 1933 और 2010 में उलझे हुए रह जाइएगा और स्टेट पावर पर वही लोग राज करते रह जाएंगे, जो करते आ रहे हैं। उनका सिर्फ चेहरा बदल जाएगा और 80 प्रतिशत लोगों की हालत वही रह जाएगी, जो आज है।
सौजन्य : अनीश अंकुर
19 JULY 2010 9 COMMENTS
त्रिवेणी संघ के पुनर्स्थापना सम्मेलन में पत्रकार श्रीकांत का उदघाटन वक्तव्य
(श्रीकांत। वरिष्ठ पत्रकार। जनमत से पत्रकारिता की शुरुआत। रविवार पत्रिका के लिए भी कई बार खोजी रपट की। 1986 से दैनिक हिंदुस्तान, पटना के विशेष संवाददाता। पत्रकारिता में विधिवत आने से पहले आरा की नाटक मंडली युवा नीति से भी जुड़े रहे और कई कहानियां भी लिखीं। प्रसन्न कुमार चौधरी के साथ मिल कर इन दिनों बिहार के अनलिखे इतिहास का दस्तावेजीकरण।)
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