Friday, April 29, 2011

मुफ्त नहीं खटने पर मार डाला, लाश को गांव में घुमाया


29 APRIL 2011 

यूपी में एक लोमहर्षक घटना हुई है और इस पर अखिल भारतीय शोर मचना चाहिए। मुज़फ्फरनगर के निरगजनी गांव में एक दलित ने बेगारी खटने यानी मुफ्त में काम करने से मना कर दिया, तो उसकी हत्‍या कर दी गयी और साइकिल पर लादकर उसकी लाश को पूरे गांव में घुमाया गया। ताकि फिर कोई दलित बेगारी खटने से मना करने का साहस न करे। अखबारों ने इस घटना को कोई तवज्‍जो नहीं दी है। एक मेल टुडे ने 28 अप्रैल के अंक में इसे छापा है, लेकिन इस पूरे मामले को इस संदर्भ के साथ उछाला है कि यूपी में दलित की सरकार की सरकार होते हुए ऐसा हुआ। गोया मरने वाला दलित न होता, तो ये एक आम घटना होती। बहरहाल इस घटना को सरकार के आईने में देखने से बेहतर है कि इसे सामाजिक संदर्भों में देखें। बंधुआ मजदूरी, बेगारी कानूनन जुर्म है लेकिन कानून की सुनता कौन है? हर जगह खाप वाले मौजूद हैं। हमारी आधी सदी के लोकतंत्र में भी जाति का जहर मारक बना हुआ है। खैर, आप मेल टुडे की खबर पर नजर डालें और अपना प्रति‍रोध दर्ज करें : मॉडरेटर
Dalit killed and body paraded in Maya’s UP
By Piyush Srivastava in Lucknow

GRUESOME: Karamchand’s (inset) body was recovered from a canal in the village
THE WICKED and bloodsoaked feudal system of poor Dalits working for the rich upper caste — and getting tortured and killed if they refuse — is very much alive in Uttar Pradesh’s underbelly.
The Dalit villagers of Nirgajani in Uttar Pradesh’s Muzaffarnagar district were reminded on Monday about the dreadful “ begari system” — working in the fields of the affluent without wages.
Affluent villagers shot dead Karamchand ( 42) and took out a gruesome procession of his body on a bicycle to intimidate and remind poor Dalits about their fate if they refused to work in the fields of the rich.
After their macabre dance of death, they threw his body into a canal.
They also assaulted Karamchand’s son Monu when he tried to save his father.
All this took place under the Bhopa police station and in a state where the chief minister, Mayawati, takes pride in her Dalit antecedents.
The killers escaped from the village when Monu was admitted to the district government hospital and a case was registered by the police.
Karamchand and Monu were working in their own field when Amresh, Dhanpal and Ramesh Singh, all landed Jats belonging to the same family, reached the area along with over 10 people and demanded they stop work immediately to help them in harvesting wheat.
The Dalit farmer had earlier raised his voice against begari too.
“ My father had refused them earlier because they didn’t pay him anything for earlier work. They had declared that we would have to follow their order or leave the village,” Monu said.
When Karamchand put his foot down and refused to work, the trio attacked him.
Desperate to escape, he climbed the roof of a temple in the village. But Amresh, a hardened criminal, according to the police, fired at him, causing his death.
“ They hauled his dead body on to a bicycle and took out a procession. They were shouting that anyone who defied their order would be killed,” Monu said, recalling the horrifying moments.
“ I pleaded with them to give me the body of my husband,” Rajesh Kumari, Karamchand’s wife said. “ But they kept laughing.” Karamchand’s body was later found in a canal by the police.
Unable to make him bend to their will, the Jats had found other ways of harassing him. “ The rich people had taken over a part of our land.
They were angry with my husband for the last 10 years for protesting against begari.
I had begged my husband to stop making enemies of them,” Kumari said.
Muzaffarnagar SP K. B. Singh said Karamchand’s body had been fished out of the canal and sent for post mortem.
“ According to our initial investigation, he was shot dead when he refused to follow the orders of some criminals in the village. All the killers belong to the same family. While five persons have been arrested, 12 are still absconding,” he said.
VICIOUS SYSTEM OF BONDED LABOUR
Begar or begari was a widely prevalent system of bonded labour in rural India in the medieval period. It could be compulsory or forced labour at a very low wage, or free menial labour.
This included carting heavy luggage for rich people or working in the fields of powerful villagers at the cost of neglecting one’s own crops.
It was abolished by the government of India in 1976

Thursday, April 28, 2011

दलित नाट्य समारोह से उठते कुछ सवाल



♦ कौशल किशोर
अंबेडकर जयंती पर पिछले दिनों लखनऊ में हुए नाट्य समारोह की यह रपट कौशल किशोर ने हमें भेजी है। यह सिर्फ रपट नहीं है – इसके बहाने उन्‍होंने इस नाट्य समारोह की आलोचनाओं के सामाजिक संदर्भ भी समझाये हैं। बड़े अखबारों की विद्वेषपूर्ण भूमिका की पोल भी खोली है। कौशल जी ने यह रपट इस टिप्‍पणी के साथ हमें और अन्‍य वेबसाइट्स को भेजी है कि यह लेख किसी प्रिंट मैगजीन को नहीं भेजा गया है : मॉडरेटर

अंबेडकर और गांधी का एक दृश्‍य।

एक और नाटक का दृश्‍य [ तस्‍वीरें बड़ी साइज में देखने के लिए इमेज पर चटका लगाएं ]
स साल लखनऊ में डॉ अंबेडकर के जन्म दिवस 14 अप्रैल 2011 से यहां दलित नाट्य महोत्सव शुरू हुआ, जो 16 अप्रैल तक चला। इस महोत्सव का आयोजन शहर की सामाजिक संस्था अलग दुनिया ने किया था। इसके अंतर्गत तीन नाटक दिखाये गये। पहले दिन राजेश कुमार का लिखा ‘अंबेडकर और गांधी’ का मंचन दिल्ली की संस्था अस्मिता थियेटर ग्रुप ने किया। इसका निर्देशन जाने-माने निर्देशक अरविंद गौड़ ने किया था। दूसरे दिन मराठी लेखक प्रेमचंद गज्वी का लिखा नाटक ‘महाब्राह्मण’ का मंचन मयंक नाट्य संस्था, बरेली ने किया। इसका निर्देशन राकेश श्रीवास्तव ने किया था। समारोह के अंतिम दिन 16 अप्रैल को राजेश कुमार द्वारा लिखित व निर्देशित नाटक ‘सत भाषे रैदास’ का मंचन शाहजहांपुर की संस्था अभिव्यक्ति ने किया। नाट्य प्रर्दशन के दौरान चचा-परिचर्चा भी होती रही, जो दलित रंगमंच की जरूरत क्यों है, इस रंग आंदोलन की दिशा क्या हो, जन नाट्य आंदोलन से इसका रिश्ता क्या है आदि विषयों पर केंद्रित थी। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ, आलोचक वीरेंद्र यादव, दलित चिंतक अरुण खोटे, राजेश कुमार, कृष्णकांत वत्स आदि ने इस चर्चा में भाग लिया।
इन नाटकों ने धर्म, अस्पृश्यता, वर्णवादी व्यवस्था, गैरबराबरी, सामाजिक शोषण, ब्राह्मणवाद जैसे मुद्दों को उठाया और इस बात को रेखांकित किया कि लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान व कानून का शासन होने के बावजूद आज भी समाजिक तौर पर ऐसे मूल्य मौजूद हैं जो शोषण व उत्पीड़न पर आधारित हैं तथा मनुष्य विरोधी हैं। आज की सत्ता द्वारा ये संरक्षित भी हैं। इस व्यवस्था को बदले बिना दलितों-शोषितों की मुक्ति संभव नहीं है। चेतना और प्रतिरोध पर केंद्रित इस नाट्य समारोह का यही मूल संदेश था। इस आयोजन की एक खासियत यह भी देखने में आयी कि नाटकों को देखने बड़ी संख्या में लोग आये। ये दर्शक ‘नाटक देखा और चल दिये’ से अलग और लखनऊ रंगमंच के पारंपरिक दर्शकों से भिन्न थे। तीन दिनों तक हॉल भरा रहा बल्कि काफी दर्शकों को जगह न मिलने पर सीढ़ियों पर बैठकर या खड़े होकर नाटक देखना पड़ा। नाटक और उसकी थीम से उनका जुड़ाव ही कहा जाएगा कि नाटक खत्म होने के बाद भी विचार विमर्श, बहस-मुबाहिसा, बातचीत का क्रम चलता रहा। यह एक नयी बात थी, जो इस समारोह में देखने को मिली।
यह विचार व बहस का अलग विषय है कि जहां हिंदी साहित्य में दलित लेखन ने पिछले दो दशकों से एक विशिष्ट प्रवृति के रूप में अपनी पहचान बनायी है, दलितों की समाजिक समस्याओं को संबोधित किया है और उनकी राजनीतिक दावेदारी को मजबूती से जताया है, वहीं हिंदी में दलित नाटकों के क्षेत्र में ठहराव जैसी स्थिति क्यों? मराठी में दलित नाट्य आंदोलन तो पिछली शताब्दी के उत्तरार्द्ध में शुरू हो गया था। जिस समाजिक यथार्थ ने दलित साहित्य आंदोलन के लिए जमीन तैयार की है, वह दलित नाट्य आंदोलन को प्ररित नहीं कर सका, इसके क्या कारण हो सकते हैं, यह विचारणीय है।
इस नजरिये से देखा जाए, तो लखनऊ में आयोजित इस पहले दलित नाट्य समारोह को एक नयी शुरुआत माना जा सकता है। हिंदी प्रदेशों में भी इस तरह का यह पहला दलित नाट्य समारोह था। तीन दिनों तक चले इस नाट्य समारोह में दर्शकों की भागीदारी और प्रस्तुति की श्रेष्ठता का दबाव ही था कि लखनऊ के अधिकांश अखबारों द्वारा इस समारोह की उपेक्षा नहीं की जा सकी। भले ही इसकी रिपोर्ट छापने के साथ अपनी ओर से उन्होंने आयोजन पर सवाल करते हुए कुछ टिप्पणियां भी प्रकाशित की। इस मामले में अंग्रेजी दैनिक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के लखनऊ संस्करण की भूमिका गौरतलब है। इस अखबार ने नाटकों की कथावस्तु, निर्देशन, अभिनय, संगीत आदि विविध पक्षों पर एक शब्द नहीं लिखा तथा कोई रिपोर्ट या समीक्षा प्रकाशित नहीं की। बेशक अखबार के रिपोर्टर ने इस नाट्य समारोह को ‘स्टेजिंग ए नेम गेम’ शीर्षक से एक बड़ी-सी खबर जरूर प्रकाशित की। इसे खबर कहना उचित नहीं होगा क्योंकि यह मात्र लखनऊ के कुछ कलाकारों का दलित नाट्य समारोह का विरोध था। ये विचार जरूर गौरतलब हैं।
नाट्य समारोह का विरोध करने वालों का तर्क था कि एक खास जाति विशेष के नाम पर नाटक करने का कोई औचित्य नहीं है। आज दलित नाट्य समारोह हो रहा है, कल दूसरी जातियों के नाट्य समारोह होंगे। इससे तो रंगमंच की दुनिया में जातिवाद बढ़ेगा। रंगमंच की दुनिया तो वैसे ही आज संकटग्रस्त है और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, ऐसे में दलित नाट्य समारोह इस रंगमंच को विभाजित करेगा। इस तरह का आयोजन अलगाववादी व विघटनकारी है। इनका यह भी कहना था कि दलित के नाम पर नाटक समारोह का आयोजन जनता के साथ मजाक है, यह राखी सावंत जैसे सस्ते प्रचार का तरीका है। आयोजकों को यदि इन नाटकों का प्रदर्शन करना ही था, तो इस समारोह को किसी और नाम से किया जा सकता था। लेकिन दलित के नाम पर नाट्य समारोह के आयोजन के पीछे आयोजकों का मात्र निहित स्वार्थ है। इनका उद्देश्य ‘दलित’ नाम को बाजार में भुनाना तथा प्रदेश की मौजूदा सरकार से लाभ लेना है।
यहां इस तथ्य का उल्लेख जरूरी है कि इस नाट्य समारोह में जिस ‘सत भाषै रैदास’ नाटक का मंचन हुआ, उसे पिछले साल प्रदेश के संस्कृति निदेशालय ने स्वीकृति व सारी तैयारी के बावजूद मंचन के कुछ घंटे पहले पंचम तल के आदेश से इसका प्रदर्शन रोक दिया था क्योंकि इस नाटक में रैदास का जो सामंतवाद व ब्राह्मणवाद विरोधी रूप उजागर किया गया था, उससे प्रदेश की मौजूदा सरकार की समरसता की अवधारणा पर चोट पड़ती थी। इस समारोह में उस नाटक का प्रदर्शन मौजूदा सत्ता के उस संस्कृतिविरोधी रवैये का प्रतिवाद था।
इस नाट्य समारोह का विरोध करने वाले जो कलाकार दलित को जाति के रूप में देखते हैं, दरअसल वे इस सच्चाई को नकार देना चाहते हैं कि दलित भारत की विशिष्ट सामाजिक व्यवस्था की देन हैं, जिसका रूप वर्णव्यवस्था है तथा वैचारिक व दार्शनिक आधार ब्राह्मणवाद है। यह दलित शूद्र वर्ण के रूप में जाना जाता है तथा सामंती व्यवस्था में श्रमजीवी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे शिक्षा व ज्ञान प्राप्त करने से वंचित रखा गया तथा वह अपने पुश्तैनी पेशे को अपनाने के लिए अभिशप्त रहा। देश के आजाद होने, राजनीति प्रणाली के रूप में लोकतंत्र को अपनाने, समाज के पूंजीवादीकरण, दलितों के अंदर शिक्षा का प्रसार, नौकरियों में आरक्षण आदि से जहां दलितों में चेतना का प्रसार हुआ है, वहीं इनमें से एक शिक्षित तबका उभरा है, जिसने राजनीतिक दावेदारी जतायी है और सत्ता में भागीदारी तक पहुंचा है। इस सबके बावजूद आज भी न सिर्फ सामंती अवशेष के रूप में पिछड़े भूमि संबंध मौजूद हैं बल्कि वर्णवादी व्यवस्था का मजबूत प्रभाव समाज में बना हुआ है। यही वह जमीन है, जो पिछड़े सांस्कृतिक मूल्यों, सामाजिक गैरबराबरी और सवर्ण व ब्राह्मणवादी वर्चस्ववाद के लिए आधार प्रदान करती है तथा न सिर्फ दलित आंदोलन बल्कि व्यापक जनवादी आंदोलन का परिप्रेक्ष्य निर्मित करती है। इसीलिए किसी सांस्कृतिक आयोजन को जब दलित नाट्य समारोह के रूप में आयोजित किया जाता है, तो उसके पीछे इसी खास परिप्रेक्ष्य को फोकस करना है। इसके द्वारा उस सांस्कृतिक संघर्ष को आगे बढ़ाना है जो दलितों के सामाजिक पहचान, अस्मिता, सम्मान जैसे मूल्यों पर आधारित है तथा जिसका लक्ष्य बराबरी के एक बेहतर व मानवीय समाज का निर्माण करना है।
रही बात रंगमंच के विभाजन की तो एक ऐसे समाज में जहां समाज वर्गों व कई उपवर्गों में बंटा हो, वहां निरपेक्षता व तटस्थता जैसे मूल्य बेमानी हैं। ऐसे समाज में संस्कृति हमेशा सापेक्षता में अपनी सार्थकता साबित करती है। हमारे समाज में जो संघर्ष चल रहा है, कोई भी कला आंदोलन उससे निरपेक्ष नहीं रह सकता। नाटक के क्षेत्र में तो जन नाटय आंदोलन ने तो कलावाद के विरुद्ध संघर्ष करके ही अपनी पहचान बनायी है। सामाजिक व राजनीतिक आंदोलनों के उतार-चढ़ाव की वजह से संभव है सांस्कृतिक धरातल पर कभी यह संघर्ष अपने तीखे रूप में हो, कभी उसमें वह तेजी न हो। भले ही नाटक व रंगमंच में विभाजन की यह रेखा धूमिल जान पड़ती हो लेकिन इसका अस्तित्व हमेशा से रहा है, खासतौर से इप्टा के गठन के बाद से तो हम बखूबी इसका दर्शन कर सकते हैं।
यह सांस्कृतिक संघर्ष लखनऊ रंगमंच पर भी मौजूद है। इस दलित नाट्य समारोह पर ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में जिनकी टिप्पणियां प्रकाशित की गयी, ये वे कलाकार व निर्देशक हैं, जो लगातार नाटक में विचार व राजनीति का विरोध करते हैं और नाटक में कलावाद के पक्षपोषक हैं। इनकी इस कलावादी अवधारण के विरुद्ध लखनऊ रंगमंच में विवाद व बहस भी जारी है। इन कलाकारों का दलित विरोधी होना और दलित नाट्य समारोह का विरोध करना बहुत आश्चर्यजनक नहीं है। लेकिन जब इप्टा जैसी प्रगतिशील नाट्य संस्था से जुड़े कलाकार व निर्देशक इनके साथ एकताबद्ध हो जाते हैं, तब हमें समझना जरूरी है कि ब्राह्मणवादी मानसिकता कितने गहरे हमारे अंदर जड़ जमाये बैठी हुई है, जो हर कठिन समय में प्रगतिशीलों में उभर कर सामने आ जाती है। इस मायने में कहा जाए तो यह दलित नाट्य समारोह की सफलता ही है कि उसने बहुतों की ‘प्रगतिशीलता’ का पर्दाफाश किया है।
एक बात ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की भूमिका पर। किसी नाटक या किसी नाट्य समारोह को लेकर सवाल उठाना, इसके मुद्दों पर बहस व वाद-विवाद संचालित करना कहीं से गलत नहीं है। यह होना भी चाहिए। लेकिन नाटक को लेकर एक शब्द नहीं, मात्र कुछ लोगों के एक पक्षीय विचारों को प्रकाशित करना, दूसरे पक्ष के विचारों को सामने न आने देना तथा आयोजनकर्ता संस्था के बारे में गलत तथ्य पेश करना – यह कौन सी पत्रकारिता है? क्या इसे स्वस्थ पत्रकारिता का नमूना माना जा सकता है?
(कौशल किशोर। सुरेमनपुर, बलिया, यूपी में जन्‍म। जनसंस्‍कृति मंच, यूपी के संयोजक। 1970 से आज तक हिन्दी की सभी प्रमुख पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। रेगुलर ब्‍लॉगर, यूआरएल हैkishorkaushal.blogspot.com। उनसे kaushalsil.2008@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

CAN DALITS MAKE A CLAIM OF THEIR FUNDAMENTA RIGHTS IN THE RAJ OF MS. MAYAWATI?



On January 3, 2010, a 12 years old girl named Rita, belonging to Dalit community; a resident of Koyala Kandi village under Shivkuti police station, Allahabad district was raped by three persons while returning from her work of sweeping, washing clothes and pots of her employers at around 7 pm.
On July 3, 2010 Mrs. Lalli Devi wife of Gulab, a 35 years old lady belonging to Dhrkar (scheduled caste) community, is a resident of Tikari village under Phulpur police station, Allahabad district was paraded naked and beaten by upper caste persons for opposing illegal dispossession from her land.

On January 9, 2010. Mrs. Lilawati aged about 40 years, belonging to Chamar community, is a resident of Kodsar village under Tharwai police station, Allahabad district, was raped by the husband of the village head of her village, when she went to his home to take signature on the application seeking financial help from the state for the marriage of her daughter.
On July 4, 2010, Mrs. Guddi Devi wife of Gulabchandra, aged about 27 year old dalit woman belonging to Chamar community a resident of Sathar village under Sarai Mamerez police station, Allahabad district was abused, sexually harassed and beaten by persons belonging to Yadav community for opposing illegal and forceful dispossession of her land.
On 11.11.2010 an eleven years old tribal girl named Guriya was made a victim of human sacrifice but no case was registered against the perpetrators.
On 25.10.2010, Mr. Sanjay Pasi, a resident of Sarai Alam village under Sarai Mamrez police station, Allahabad district belonging to a dalit community, was assaulted and beaten and seriously threatened for daring to make his wife Mrs. Shanti Devi, a candidate for the post of village head in the Panchayat election. Mr. Lalchand belonging to Chamar community, a resident of Ranipur village under Sarai Mamrez police station, Allahabad district, was assaulted, beaten and insulted for the offence as being a candidate for the post of village head in the Panchayat election, held on 25.10.2010.
Mr. Gangavishnu and Mr. Kallu Mistri belonging to Chamar community are residents of Dusauti village under Handiya Police station, Allahabad district. It is alleged that upper caste candidates offered money to the above named victims to cast their votes in his favour. But the victim refused to accept the money and wished to cast their votes according to their independent will. This offence of these victims caused havoc for them. The upper caste candidate and his men pulled the victims out of their homes and beat them, insulted them by using filthy language and threatened them to face the consequences. Ms. Guddi, aged about 22 years, daughter of Mr. Jwala Prasad belonging to Chamar community is a resident of Kerwa Ranhor village under Copan police station, Sonebhadra district. Ms. Guddi was sexually exploited by an upper caste person for a long time and when she became pregnant, she was deserted by her upper caste lover and threatened not to tell about it anybody. Mrs. Bhagwani wife of Ramesh belonging to Chamar community is a resident of Kamhardih village, Robertsganj. On the date and time when the incident took place Mrs. Bhagwani was pregnant and groaning under the pain of mature pregnancy. At such a time persons belonging to upper caste came to her and asked her to go on work. When she refused they assaulted and beat her mercilessly. Mr. Biharilal, belonging to Chamar community, is a resident of Ranhor village under Chopan police station, Sonebhadra district. Mr. Biharilal was assaulted, beaten, insulted and abused for the offence that he dared to oppose the indecent comment on women of his community by some upper caste goons on 2.5.2010.
Mr. Vinod Kumar Pasi, belonging to a scheduled caste community, is a resident of Gothwa village under Sarai Mamerez police station, Allahabad distritct. There is piece of land allotted for the victim’s family to construct a room under housing scheme of the Uttar Pradesh state government. It is alleged that the perpetrators, belonging to influential Yadav community, are trying to take possession over the allotted land illegally. The illegal dispossession of the poor family from their land was complained with concerned administrative authorities but nothing was done to stop the perpetrators from their illegal acts.
For complaining with the authorities, on 2.7.2010 the perpetrators assaulted and beat the victim for opposing the illegal dispossession from his allotted land. Mr. Kashi, originally a resident of Naugarh, Chandauli had been working for last 10 months at the house of Mr. Salim son of Ishahak, a resident of Nai Bazar village under police station Robertsganj, Sonebhadra district. The victim was working for Rs. 1600 monthly wage.
On 23.7.2010 when the victim asked for his wage for 10 months, he was beaten, abused and insulted for demanding his due wages. Mrs. Mangri kol wife of Taulan Kol, is a resident of Parsauna Khurd village, Ghorawal police station, Sonebhadra district and belongs to a tribal community.
On 3.5.2010 some upper caste persons as being drunk came to the shop of the victim and began to sexually harass the victim. It is alleged that the perpetrators dragged the victim inside a house to rape her. But having heard the cries of the victim some came to the place and saved the victim. It is alleged that the perpetrators not being successful to rape the victim they beat her and made her seriously injured. Mr. Laxaman son of Hiraman, belonging to a Dhobi community, is a resident of Arangi village under Karama police station, Sonbhadra district. It is alleged that upper caste persons illegally demolished his hut and took away everything from his house. It is also reported that the perpetrators assaulted and beat the family members of the victim to vacate the possession over the land allotted for the victim family. Mr. Sudhirbabu son of Vikrma Prasad, belonging ot Chamar community, is a resident of Sukrut Tola under Robertsganj police station, Sonebhadra district. The victim and others families have been living for 30-40 years on the land of Gram Samaj by making their thatched huts.
On 29.08.2010 at around 10 am scores of upper caste persons came to the place armed with lathis, guns and with a bulldozer and threatened us to vacate the land. Mr. Rajesh kumar son of Jamuna Prasad is a resident of Ward No. 3, Chaman Ganj under Koraw police station, Allahabad district, is a human rights activist and has been associated with Peoples Watch, Tamilnadu and Peoples Vigilance Committee on Human Rights. Mr. Rajesh kumar, as a human rights activist, has been working for the rights of marginalized and weaker sections of the society. It is alleged that Mr. Rajesh kumar received information on his mobile from Suhas village that some upper caste persons had paraded a dalit women naked and insulted her. On the basis of the information received Mr. Rajesh kumar prepared an application and went to the Koraw police station to lodge the complaint about the incident. But due to influence of the perpetrators, the police officer of Koraw police station refused to register the complaint of Mr. Rajesh kumar. When Mr. Rajesh Kumar told the officer that he was human rights activist them Mr. Ashok Kumar Yadav, Sub Inspector at the Koraw police station abused, insulted and threatened Mr. Rajesh kumar and refused to register the complaint. Mr. Abhayraj, belonging to Chamar community, is a resident of Mishrapur village under police station Koraw, Allahabad district. Mr. Abhayraj is a student.
It is alleged that on 04.05.2010 while he returning to his home from taking both at around 10 am, he was stopped by Mr. Sushil son of Hari Mohan, who is Brahmin, on the way and was force by Mr. Sushil to give his mobile to make a call. When the victim refused to give his mobile to Mr. Sushil then he started abuse and insult her by using filthy language. When the opposed it then Mr. Sushil threatened the victim to kill him. On hearing our voices some other Brahmins men came to the place and beat the victim. When victim went to the police station to complain about the incident, Sub Inspector of the Koraw police station refused to register FIR of the victim.
Do current visits of Mayawati mean anything substantial for poor dalits?
Nowadays, almost all media sources are giving wide publicity to the visits of Ms. Mayawati in various part of the state of Uttar Pradesh and one can find a plethora of news items about the importance of these visits of the Chief Minister, which are being made in the name of inspection of the progress made in development schemes, in particular, and the rule of law, in general. Though, there are a good number of people who make fun of it for being mere an election stunt, but on the other hand, there is perception that the current visits of Ms. Mayawati is a sincere effort to improve the lot of the people in the state. Apart from these two fold perceptions of either side, in the light of the cases, mentioned above, regarding atrocities on poor dalit population, as an independent observer, the Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR) is of the opinion that the current visits of Mayawati is nothing but a part of cheap politics, of which the people of the state of Uttar Pradesh have been familiar for a long time. Mayawati Raj is no exception of politics of cheap popularity and PVCHR suspects if it is of any substantial importance, not only for poor dalit population but also for an ordinary citizen residing in the state of Uttar Pradesh.
What does Ms. Mayawati fail?
It might be high time to speak out loudly about the failures of Ms. Mayawati, not only being herself a dalit, but at the same time, exercising substantial authority and power in the state of Uttar Pradesh. The first and foremost failure of Ms. Mayawati is that her government is proving itself, like other governments, to be an important tool of serving the interests of capitalists as well as feudal forces, an undeclared ally to the capitalist masters. Mayawati government is applying and using all those unfair means to remain in the power that is required in such a state, which very foundation is formed of the subtle alliance of the interests of feudal and capitalist forces. Mayawati government seems to feel no shame of assimilating in mafias and unsocial elements, who are themselves, biggest threat for the development and rule of law.
Though to some extent, it is claimed that Mayawati government has made the bureaucracy accountable but even on this front, PVCHR suspects if any substantial development has been made. There has been no check on corruption in the state; no work efficiency could be seen in government departments and offices, no clarity in policy decisions could be experienced, no check on crimes and rights violations of weaker sections of the society. There is no visible increased participation of the poor population in the affairs of the state of Uttar Pradesh in Mayawati government. An ordinary citizen is still helpless and has no say for the blatant violation of their fundamental rights. Extreme poverty and illiteracy is still pervading in the state. Majority of the children, in the state, is horribly malnourished, but it is not a matter of concern either for the Mayawati government or for media.
Mayawati government and International human rights norms and standard
Further, it is more ironic to learn that Mayawati government has shown no interest to raise awareness among the people for international norms and standard for the protection of human rights. Though Mayawati claims to be a dalit leader and worry about the protection of rights of dalit population in the state but she has been completely failed to work for a really accountable bureaucracy and government in the matters of violation of essential rights of poor dalit community. Still millions of people are deprived of their right to food as they have not been provided with BPL cards so that they could purchase food grains at subsidized rate. As the cases, mentioned above, glaringly prove that even in the cases of heinous crimes committed against the poorest of poor, no accountable system has been brought forth to eradicate, or at least reduce, the Raj of police impunity. Torture is still practiced widely with full impunity. Contrary to that, rights activists, working for the safeguard of the poor dalit population are targeted in Mayawati government in the same way as her predecessors.
List of cases, with more detail regarding atrocities on Dalit communities
(1) Ms. Rita Devi daughter of Vimla Devi, a 12 years old girl belonging to dalit community, is a resident of Koyala Kandi village under Shivkuti police station, Allahabad district. On January 3, 2010 Rita, as being a daughter of a very poor parents, was returning from her work of sweeping, washing clothes and pots of her employers at around 7 pm, when two men namely; Betu and Jalim, belonging to Yadav community, came to her and forcefully picked her up to sit on their motor bike and took her to a house behind Sri Ram Park. There was a man already present there and all three persons raped her one by one. The crime was complained with the police and the perpetrators were arrested.
(2) Mrs. Lalli Devi wife of Gulab, a 35 years old lady belonging to Dhrkar (scheduled caste) community, is a resident of Tikari village under Phulpur police station, Allahabad district. Lalli Devi lives in her thatched hut with her 10 years old son and her husband. Lalli Devi’s family was allotted a piece of land under Indira Awas Yojna to construct a room. But meantime some upper caste men of her village namely, Devi Prasad Mishra, Rammurti and other got a stay order from the Court not to construct the room. After three years stay order of the perpetrators was vacated and Mrs. Lalli Devi’s family started to build a room on the allotted piece of land. But on July 3, 2010 the perpetrators came to the place armed with sticks and demolished the constructed room and they set her hut on fire. When Lalli Devi opposed it, they assaulted Mrs. Lalli Devi, her son and husband. They also paraded her naked. The offence was complained with the police and case was registered but no immediate action was taken against the perpetrators.
(3) Mrs. Lilawati wife of Pancham, aged about 40 years belonging to Chamar community is a resident of Kodsar village under Tharwai police station, Allahabad district. Mrs. Lilawati has a young daughter and had arranged her marriage. She was trying to receive financial help from the government for the marriage of her daughter under welfare scheme of the state of Uttar Pradesh. Mrs. Lilawati went to the house of the village head Mrs. Meena Devi for her help and to get her signature on the application. Mrs. Meena told Lilawati that she was village head only for the name. Meena further advised her to meet her husband Mr. Nandlal, who was actual man performing all works as a village head. According to Lilawati when she went to Mr. Nandlal, he asked her to come in the room and forcefully he raped Lilawati in the room on January 9, 2010. Mrs. Lilawati tried her best to escape her rape but it is reported that the door was shut from outside. The incident was complained with the police but no action was taken against the perpetrator, then Mrs. Lilawati filed the complaint in the Court under 156(3) of Criminal Procedure Code.
(4) Mrs. Guddi Devi wife of Gulabchandra, aged about 27 year old dalit woman belonging to Chamar community, is a resident of Sathar village under Sarai Mamerez police station, Allahabad district. On July 4, 2010 perpetrators Shiv Narayan Yadav, Basant Lal Yadav, Ramkarn Patel along with three- four policemen came to the house of the victim Mrs. Duddi Devi and illegally started to construct building on her land. When Mrs. Guddi Devi opposed the illegal construction, the above named perpetrators beat her cruelly and she got badly injured. The incident was complained with the police but no FIR was registered against the perpetrators, then the victim filed the complaint in the Court under 156(3) of Criminal Procedure Code.
(5) Ms. Guriya aged about 11 years was a daughter of Madangopal belonging to a tribal community from Vadhwar village under Koraw police station, Allahabad district. It is alleged that the daughter of Mr. Ramashankar Patel alias Lala had been ailing for sometimes and the family of Ramashankar had been involved in some witch hunting activities as believing in to cure her ailing 22 years old daughter. It is said that on 11.11.2010 the victim Guriya went to see the witch hunting activities at the home of Jhunnilal Patel son of Banshidhar Patel along her with 4 years old brother but she never returned home. On 13.11.2010 father and other family members of the victim went to the Koraw police station to register the case regarding missing of Guriya but Sub Inspector, Mr. Virenndra Mishra, refused to register the case and reprimanded the victim father and his family members and forcefully confined them to stay at the police station. Next day on 14.11.2010 dead body of Guriya was recovered from a well behind the house of Jhunnilal Patel. It is alleged by Mr. Madangopal that his daughter has become a victim of human sacrifice but police registered no case against the perpetrators.
(6) Mrs. Rajkali wife of Ramsagar belonging to dalit community, a resident of Sikari village under Barahsil police station, Allahabad was beaten by the upper caste persons (Brahmins) on 10.7.2010 while she was opposing the perpetrators for not taking away the compost belonging to her family. The victim complained with the police and other authorities, including National Human Rights Commission and National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe about the incident about the incident but no action was taken against the perpetrators, then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(7) Mr. Rakesh Pasi son of Shankar Lal, a resident of Tikara Pipari village under Kaurihar police station, Allahabad district was detained at the police station for whole night, severely tortured and threatened by Mr. Hashimuddin, in-charge of Lalgopalganj police post, Allahabad district on 28.5.2010 for refusing to work as a bonded labor. The victim complained with concerned authorities, including National Human Rights Commission and National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe about the incident but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(8) Mr. Sanjay Pasi son of Ramkaran Pasi, a resident of Sarai Alam village under Sarai Mamrez police station, Allahabad district belonging to a dalit community, was assaulted and beaten and seriously threatened on 25.10.2010 at the polling booth by upper caste persons, for daring to make his wife Mrs. Shanti Devi, a candidate for the post of village head in the Panchayat election held on 25.10.2010. The victim complained with concerned authorities like District Election Officer and National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe about the incident but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(9) Mr. Lalchand son of Ramnaval belonging to Chamar community is a resident of Ranipur village under Sarai Mamrez police station, Allahabad district. Mr. Lalchand was a candidate for the post of village head in the Panchayat election, held on 25.10.2010. The influential Yadav candidate forcefully captured the polling booth for fake voting. When the victim opposed it they assaulted, beat and insulted the victim. The victim complained with concerned authorities like District Magistrat, State Election Officer, National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe and National Human Rights Commission about the booth capturing and assault on the victim, but no action was taken against the perpetrator.
(10) Mr. Gangavishnu son of Ramautar and mr. Kallu Mistri son of Rameshwar Prasad belonging to Chamar community are residents of Dusauti village under Handiya Police station, Allahabad district. It is alleged that upper caste candidates offered money to the above named victims to caste their votes in his favour. But the victim refused to accept the money and wished to cast their votes according to their independent will. But this offence of these victim caused havoc for them. The upper caste candidate pulled the victims out of their homes and beat them, insulted them by using filthy language and threatened them to face the consequences. The victim complained with concerned police authorities about the incident, but neither any FIR was registered in the police station nor any action was taken against the perpetrators.
(11) Ms. Guddi, aged about 22 years, daughter of Mr. Jwala Prasad belonging to Chamar community is a resident of Kerwa Ranhor village under Copan police station, Sonebhadra district. Ms. Guddi was sexually exploited by a upper caste person for a long time and when she became pregnant was deserted by her upper caste lover and threatened not to tell about it anybody. The victim complained with concerned police authorities and National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe about the incident but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(12) Mrs. Bhagwani wife of Ramesh belonging to Chamar community is a resident of Kamhardih village, Robertsganj. On the date and time when the incident took place Mrs. Bhagwani was pregnant and groaning under the pain of mature pregnancy. At such a time persons belonging to upper caste came to her and asked her to go on work. When she refused they assaulted and beat her mercilessly. The victim complained with concerned police authorities and National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe about the incident but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(13) Mr. Biharilal son of Sumer, belonging to Chamar community, is a resident of Ranhor village under Chopan police station, Sonebhadra district. Mr. Biharilal was assaulted, beaten, insulted and abused for the offence that he dared to oppose the indecent comment on women of his community by some upper caste goons on 2.5.2010. The victim complained with concerned police authorities and National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe about the incident but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(14) Vinod Kumar Pasi son of Kamla Prasad Pasi, belonging to a scheduled caste community, is a resident of Gothwa village under Sarai Mamerez police station, Allahabad distritct. There is piece of land allotted for the victim’s family to construct a room under housing scheme of the Uttar Pradesh state government. It is alleged that the perpetrators, belonging to influential Yadav community, are trying to take possession over the allotted land illegally. The illegal dispossession of the poor family from their land was complained with concerned administrative authorities but nothing was done to stop the perpetrators from their illegal acts. For complaining with the authorities, on 2.7.2010 the perpetrators assaulted and beat the victim for opposing the illegal dispossession from his allotted land. The incident was complained but no action was taken by the police. The victim complained with concerned police authorities and National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe about the incident but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(15) Mr. Kashi son of Basawan, originally a resident of Naugarh, Chandauli had been working for last 10 months at the house of Mr. Salim son of Ishahak, a resident of Nai Bazar village under police station Robertsganj, Sonebhadra district. The victim was working for Rs. 1600 monthly wage. On 23.7.2010 when the victim asked for his wage for 10 months, he was beaten, abused and insulted for demanding his due wages. The victim complained with concerned police authorities but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(16) Mr. Ramkewal son of Lalmani from Dhobi community aged about 62 years old is a resident of Arawali village under Robertsganj police station Sonebhadra district. On 23.7.2010 upper caste persons came to the house of the victim and asked for the victim. At that time the victim was not present at his house. The Victim’s wife Amarawati told them that her husband was not at home. Then the perpetrators started abusing her husband using filthy language. When Mrs. Amarawati opposed it the perpetrators abused her and beat her. They also tore her clothes and sexually harassed her. Seeing this when her son Vinod opposed it they also beat her son Vinod. When the victim and her family members went to the police station to complain about the incident, the police officer reprimanded them and asked them to leave the police station. Then the victim complained with higher police authorities and National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(17) Mr. Purushottam Chaudhari son of Sahangu Prasad, a resident of Munsafi colony, Robertsganj belonging to a dalit community was assaulted and beaten on 12.5.2010 by upper caste persons for standing his motor bike before the shop of the perpetrators. The victim complained with concerned police authorities about the incident but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(18) Mrs. Mangri kol wife of Taulan Kol, is a resident of Parsauna Khurd village, Ghorawal police station, Sonebhadra district and belongs to a tribal community. On 3.5.2010 some upper caste persons as being drunk came to the shop of the victim and began to sexually harass the victim. It is alleged that the perpetrators dragged the victim inside a house to rape her. But having heard the cries of the victim some came to the place and saved the victim. It is alleged that the perpetrators not being successful to rape the victim they beat her and made her seriously injured. The victim complained with concerned police authorities and National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(19) Mr. Laxaman son of Hiraman, belonging to a Dhobi community, is a resident of Arangi village under Karama police station, Sonbhadra district. The victim is an educated person and works as a Shikshamitra. On 26.4.2010 the perpetrators came to my house and started to abuse and beat my family members. When we opposed it, they demolished our huts and took away the thing from my house and threatened by putting pistol on the head of my father to keep quiet. The perpetrators assaulted, threatened the victim and his family to vacate the possession over the land. The victim complained with concerned police authorities but no action was taken against the perpetrators, and then the victim, with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(20) Mr. Sudhirbabu son of Vikrma Prasad, belonging ot Chamar community, is a resident of Sukrut Tola under Robertsganj police station, Sonebhadra district. The victim and others families have been living for 30-40 years on the land of Gram Samaj by making their thatched huts. On 29.08.2010 at around 10 am scores of upper caste persons came to the place armed with lathis, guns and with a bulldozer and threatened us to vacate the land. They said that they had purchased the land. The victim asked them to show the paper. At this they began to abuse us and to remove our huts otherwise they would kill us under the bulldozer. They demolished out huts with the help of bulldozer and destroyed everything in our houses. They also killed our animals by the bulldozer. The victims complained about the incident with the commissioner and other police authorities. They also complained with the National Commission for Scheduled Caste and Scheduled Tribe but no action was taken against the perpetrators. Then with the help of Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights, filed a complaint in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
(21) Mr. Rajesh kumar son of Jamuna Prasad is a resident of Ward No. 3, Chaman Ganj under Koraw police station, Allahabad district. The victim is a human rights activist and has been associated with Peoples Watch, Tamilnadu and Peoples Vigilance Committee on Human Rights. Mr. Rajesh kumar, as a human rights activist, has been working for the rights of marginalized and weaker sections of the society. It is alleged that Mr. Rajesh kumar received information on his mobile from Suhas village that some upper caste persons had paraded a dalit women naked and insulted her. On the basis of the information received Mr. Rajesh kumar prepared an application and went to the Koraw police station to lodge his complain about the incident. But due to influence of the perpetrators, the police officer of Koraw police station refused to register the complaint of Mr. Rajesh kumar. When Mr. Rajesh Kumar told the officer that he was human rights activist them Mr. Ashok Kumar Yadav, Sub Inspector at the Koraw police station abused, insulted and threatened Mr. Rajesh kumar and refused to register the complaint.
(22) Mr. Shiv Shankar Pasi son of Nanku, belonging to a scheduled caste community, is a resident of J.73/4 Sarai Maswanpur under Kalyanpur police station, Allahabad district. Mr. Shiv Shankar’s sister, who was widow used to live at 587D, 2 Drumand Road, Civil Lines. On 25.7.2010 Mr. Balkrishn Tripathi son of Ganga Prasad Tripathi murdered the sister of the victim for money after hatching a conspiracy. The perpetrator, Mr. Balkrishn Tripathi was a broker in selling out a house owned by victim’ sister. It is reported that the house was sold out for Rs. 14 lakhs. Further it is alleged that Mr. Balkrishn Tripathi committed the murdered the victim’s sister for this money. It is alleged that after committing murder, Mr. Balkrishn Tripathi himself went to the police station and lodged an FIR as claiming himself to be the husband of the deceased. The victim has complained about the facts with concerned higher police authorities and has filed a case in the Court.
(23) Mr. Abhayraj son of Ramakant, belonging to Chamar community, is a resident of Mishrapur village under police station Koraw, Allahabad district. Mr. Abhayraj is a student. It is alleged that on 04.05.2010 while he returning to his home from taking both at around 10 am, he was stopped by Mr. Sushil son of Hari Mohan, who is Brahmin, on the way and was force by Mr. Sushil to give his mobile to make a call. When the victim refused to give his mobile to Mr. Sushil then he started abuse and insult her by using filthy language. When the opposed it then Mr. Sushil threatened the victim to kill him. On hearing our voices some other Brahmins men came to the place and beat the victim. When victim went to the police station to complain about the incident, Sub Inspector refused to register the FIR of the victim. Then victim complained with other higher police authorities about the incident but no action was taken against the upper caste perpetrators. In the end, the victim filed a complained in the Court under Section 156(3) of Criminal Procedure Code.
AUTHOR: Dr Lenin Raghuvanshi
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E-MAIL: pvchr.india [at] gmail.com

दलित महिला विरोधी डॉ. धर्मवीर?


अनीता भारती

12 सितम्बर 2005 को राजेन्द्र भवन में धर्मवीर  की पुस्तक ‘प्रेमचंद सामंत का मुंशी’ के लोकार्पण का दलित महिलाओं ने सशक्त विरोध किया। दलित महिलाओं ने धर्मवीर के दलित स्त्री विरोधी लेखन के खिलाफ न केवल नारे लगाए अपितु उन पर चप्पल भी फेंक कर मारी। सवाल उठता है कि आखिर दलित महिलाओं को धर्मवीर के खिलाफ इतने कडे़ विरोध में क्यो उतरना पडा।  हम थोडा अतीत में झांक कर देखें तो 22-23 जलाई 1995 को साउथ एवन्यू के एम.पी हॉल में आयोजित ‘हिन्दी दलित साहित्य सम्मेलन में’ धर्मवीर का ऐसा ही विरोध हुआ था। दलित महिलाओं ने उनके लेखन के खिलाफ नारे लगाते हुए उन्हे मंच से खींच लिया था। तथा उनके लेखन का बहिष्कार करने की पुरज़ोर अपील की थी। तब इन महाश्य ने दलित महिलाओं से सार्वजनिक रूप से माफी मांगी थी और कसम खाई थी कि वे आईंदा दलित महिला विरोधी लेखन नहीं करेंगे।
सौजन्‍य : blog.insightyv.com

1995 से लेकर 2005: दोनों  बार अपनी सार्वजनिक बेइज्जती भूलकर लगातार निर्लज्जता से दलित/गैर दलित स्त्रियों के खिलाफ अश्लील व आपत्तिजनक सस्ता लेखन कर रहें हैं। ‘कथादेश’ में चली बहस इसकी गवाह है। पिछले सालों  से धर्मवीर का लेखन उत्तरोत्तर दलित/गैर  दलित स्त्री विरोधी होता जा रही है। कोई ताकत उनको अनर्गल लिखने से नहीं रोक पा रही है क्योंकि वे किसी भी तर्क, विचार, सिद्धान्त और दर्शन को मानने को तैयार  नहीं है। धर्मवीर और लेखन मानवतावाद की स्थापना के खिलाफ अमानवीयता के झण्डे गाड़ना चाहता है। वह दबी कुचली दलित/गैर दलित स्त्री की अस्मिता को स्वीकारने को तैयार नहीं है। वे उसको चरित्रहीन सिद्ध करने पर तुले हैं और हद तो इस बात की है कि जो स्त्री उनके खिलाफ़ बोलने की हिम्मत रखती है उसकी तो वे सरे आम नाक, चोटी काटकर वेश्या घोषित कर पत्थर मारकर हत्या तक कर देने की हिमायत कर रहें है। वे अपनी कपोल कल्पित भौंडी कल्पना के सहारे प्रेमचन्द की ‘कफ़न’ कहानी की नायिका बुधिया का बलात्कार हुआ दिखाकर बुधिया के पेट में ठाकुर का बच्चा बताकर उसके भ्रुण परीक्षण की बात कर रहे हैं।
डॉ. धर्मवीर दलित साहित्यकार होते हुए भी वर्ण व्यवस्था को बरकरार रखना चाहते हैं, इसलिए वो अन्तरजातीय विवाह का कट्टर विरोध करते हैं, जो कि अम्बेडकर के
डॉ. धर्मवीर की चिट्ठी अनीता भारती के नाम, सौजन्‍य: अनीता भारती
जाति उन्मूलन दर्शन का एक आधारभूत स्तम्भ है। वे कहते  हैं, ‘दलित नारी के साथ गै़र दलितों द्वारा जो विवाह-बाह्य मैथुन होता है  वह जारकर्म नहीं होता बल्कि बलात्कार और केवल बलात्कार होता है।’ विवाहित स्त्री के अन्य पुरुषों के साथ सम्बन्ध को धर्मवीर जी ‘जारकर्म’ कहते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि दलित स्त्रियाँ केवल अपने समाज के दलित पुरुषों से ही शादी करें, अन्य जाति के पुरूषों के साथ अपनी मर्जी से की गई शादी के बावजूद भी उनका बलात्कार होगा। भला धर्मवार ये कौम सा दर्शन दलित समाज को अम्बेडकरवादी विचारधारा के खिलाफ दे रहें हैं?
डॉ. धर्मवीर वर्णव्यवस्था को मजबूत कर लिंगीय समानता के खिलाफ लिख रहें है। डॉ. धर्मवीर किसी हिन्दू मनुस्मृतिकार की तरह दलित औरतों को पितृसत्तात्मक समाज में उनके सामने ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के संरक्षक बन कर उन्हें मात्र घर की चार दीवारी में सिमटा देखना चाहते हैं। इसके अलावा अगर किसी औरत ने उनके इस सांमतवादी लेखन के खिलाफ आवाज़ उठाई तो उनके खिलाफ फतवा जारी कर देगें। उनके विचार से ‘ऐसी सोच वाली स्त्री अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहती है तो लड़े। रखैल के रूप में अधिकार मांगे, वेश्या के रूप में अपने दाम बढ़वाए और देवदासी के रूप में पुजारी की सम्पति में हाथ मारे ” (प्रेमचन्द सामन्त का मुंशी).  असल बात यह है कि धर्मवीर दलित स्त्री पर सौ फीसदी कब्जा चाहते हैं। अगर वह काबू में आ जाती है तो ठीक है, नहीं तो उन्होंने उसके लिए वेश्या, रखैल, देवदासी आदि सम्बोधन तो रखे हैं ही।
डॉ. धर्मवीर ‘जारसत्ता’ को अपना मौलिक चिन्तन बताकर, उसे स्थापित कर अरस्तू की तरह दार्शनिक बनना चाहते हैं। पहले उनको उनके कुछ सहयोगी लेखकों ( प्रत्यक्ष रुप से श्योराज बैचेन, कैलाश दहिया, दिनेश राम,  अप्रत्यक्ष रुप से वो लेखक जो  चुप्पी मारे बैठे हैं या फिर अपनी पत्रिकाओं में धर्मवीर के लेख ,इन्टरव्यू छाप कर) ने धर्मवीर को  डॉ. अंबेडकर घोषित करने की नाकाम कोशिश की, चेतनशील दलित साहित्यकारों ने जब इनका डॉ अम्बेडकर बनने का सपना पूरा ना होने दिया तो वे अब दार्शनिक बनने चले। जो लोग पहले इन्हें अम्बेडकर घोषित करने की कुचेष्ठा कर रहे थे अब वे ही इन्हें ‘जारसत्ता’  दर्शन का  जनक घोषित करने की पूर्ण कोशिश में लगे हैं। इनके लेखन की तर्ज पर ही इनके दर्शन की शिकार भी ग़रीब-दलित औरतें ही हैं। इनके मतानुसार दलित स्त्रियों को केवल और केवल एक ही काम है और वह है ‘जारकर्म’। डॉ धर्मवीर का कहना है ‘दलित/गैर दलित स्त्रियों के इस ‘जारकर्म’ की हिमायत में भारत का कानून भी लिप्त है. कानून के हिसाब से भारत की हर  पत्नी ‘जारकर्म’  से जितने चाहे बच्चे पैदा कर सकती है। कानून को इस बात से कोई ऐतराज नहीं है कि वह ऐसा करती है। इसलिए हिन्दुस्तान के इस कानून को पढ़कर यदि कोई अंदाज़ा  लगाए कि भारत की नारियों के चरित्र कैसे हैं तो वह क्या ग़लती करता है?’ (‘अस्मितावाद बनाम वर्चस्ववाद’ कथादेशअप्रैल 2003) तात्पर्य यह है कि उनके अनुसार आज भारत की दलित -   गैर दलित  स्त्री के सामने  सामाजिक, आर्थिक से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य, अस्मिता के कोई मुद्दे नहीं हैं। अगर स्त्री पर चर्चा होगी तो केवल उसके ‘जारकर्म’ की। इन लेखकों को दलित-गैर दलित महिलाओं के संघर्ष और त्याग से कोई सरोकार नहीं है उसका एक ही उद्देश्य है कि वे कैसे सिद्ध करें कि भारतीय स्त्री चरित्रहीन है। वे स्त्रियों के तन-मन  पर पूरा कब्जा चाहते हैं। धर्मवीर स्त्रियों के संदर्भ में  यौन  शुचिता का प्रश्न उठाकर अपने मनुवादी अहम की पुष्टि कर रहे हैं। वे दलित/गैर दलित स्त्रियों को अपनी सम्पत्ति मानते हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘थेरीगाथा की स्त्रियां’ की भूमिका में कहा है “अपनी पुस्तक के शीर्षक के

जनसत्ता में संपादक के नाम अनीता भारती का पत्र. सौजन्‍य: अनीता भारती
पद ‘थेरीगाथा की स्त्रियां मैंने जानबूझ गलत लिखा है, सही पद ‘थेरीगाथा की भिक्षुणियां’ है, लेकिन गलत शीर्षक रखकर मैं बताना चाहता हूं कि बुद्ध ने मेरी स्त्रियां छीनी हैं। घर से बेघर करके और विवाह से छीनकर स्त्रियों को सन्यास वाली सामाजिक मृत्यु की भिक्षुणियों बनाना उसका धार्मिक अपहरण कहा जाना चाहिए।”
डॉ. धर्मवीर दलित/गैर दलित स्त्रियों की वैयक्तिक स्वतन्त्रता और उनके मौलिक अधिकार छीन कर उन्हें अपनी परिभाषा के अनुसार चलाना चाहते हैं। वे बुद्ध का दर्शन जो कि मैत्री, करूणा, समता और संवेदना पर आधारित है उसका खुल्लम-खुल्ला विरोध करते हुए कहते हैं, “इस देश को बुद्ध की ज़रूरत  नहीं है। दलितों को बुद्ध की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है। बुद्ध के लौटने की प्रार्थना करना सहीं नहीं है। वे अपने घर नहीं लौटे थे, तो देश में क्या लौटेंगे?  दलितो में क्या लौटेगें? बुद्ध को लौटना है तो पहले अपने घर लौटे। घर बारी  बने, पत्नी से प्यार करें, बच्चों को स्कूल भेजें और कबीर की तरह भगवान के गुण गाएं।” (धर्मवीर का बीज व्याख्यान) मैं धर्मवीर को बुद्ध विरोधी, अम्बेडकर विरोधी, प्रेमचन्द विरोधी चर्चा में न जाकर केवल दलित स्त्री विरोधी चर्चा में ही रहना चाहूंगी। डॉ. धर्मवीर “जारकर्म” का झण्डा दलित स्त्रियों पर गाड़ कर अपने आप पर गर्व करते हुए  कहते हैं कि   ” लेकिन आप   गर्व से कह सकते हैं कि परिवार से, समाज में, साहित्य में और कानून  में “जारसत्ता की खोज आप के धर्मवीर ने की है। आप अंग्रेजी में कह सकते हैं “IS THE FIIRST DALIT CONTRIBUTION TO THE WHOLE WORLD THINKING”  आगे वह और गर्वीले अंदाज में घोषणा करतें हैं “लोग मेरे इल्हाम से परेशान हैं। मुझे यह दैवी ज्ञान कैसे प्राप्त हो गया कि किस औरत के पेट में किस पुरुष का बच्चा है। लेकिन मैं इल्हाम से नीचे रहकर ही इस बात  को जानता हूं।”
डॉ. धर्मवीर यह मानने लगे हैं कि उनको दैवीय शक्ति प्राप्त हो गई है जिससे वह सभी दलित गैर दलित महिलाओं के भ्रूण परीक्षण कर लेगें। बुद्ध का विरोध करने वाले दलित
सौजन्‍य: गुगल
लेखक  ने आखिर ब्राह्मणवादी गढ्ढे में गिरकर अपना नैतिक पतन कर ही लिया। धर्मवीर के स्त्री विरोधी लेखन के हजारों उदाहरण दिए जा  सकते   हैं। अब सवाल है कि धर्मवीर प्रेमचंद के पीछे लट्ठ लेकर क्यों पडे हैं? उन्हे प्रेमचंद से क्या दुश्मनी है?
धर्मवीर जी को प्रेमचन्द इसलिए अप्रिय हैं क्योंकि प्रेमचन्द दलित स्त्री पात्रों को अधिक मानवीय, सहनशील, संघर्षमयी दिखाते हैं और दलित स्त्री लेखन भी प्रेमचन्द को नकारता नहीं है। वह उनकी खूबियों और कमियों को एक साथ स्वीकरता है। पिछले दस सालों से लगातार दलित महिलाएं शालीनता से लिख-लिखकर डॉ.धर्मवीर जी से अपनी बहस चला रही हैं। परन्तु डॉ. धर्मवीर उस शालीनता को ताक पर रखकर उनको निरन्तर चरित्रहीन, निठ्ठली, निकम्मी, आवारा, कामचोर, पेटपूजक और ना जाने किन-किन सम्बोधनों से नवाज़तें जा रहे हैं और उनके विरोध में ना तो दलित लेखक और ना ही दलित पत्रिकाएं कुछ कह रही हैं। तब दलित महिलाएं क्या करें? कहां जाएं?  चप्पल फेंक कर विरोध करना दलित महिलाओं के मन में जमा उनका अपने खिलाफ लिखा गया दलित साहित्य के प्रति उनका दुख है। दलित समाज द्वारा बरती जा रही उपेक्षा के साथ-साथ उनका चरित्रहनन  करने पर भी क्या दलित महिलाएं चुप बैठकर लिखती रहें? बिच्छू कितनी  बार काटेगा? आखिर आप कभी तो उसे अपने हाथ से हटायेगें?  कुछ दलित साहित्यकारों का मानना है कि विरोध करने से दलित आन्दोलन टूटेगा या फिर वे यह मानते हैं कि घर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए थी। पर जब घर में ही समस्या हो तो समस्या का निदान कैसे  होगा?   दलित साहित्यकारों से खुला प्रश्न है जिस आन्दोलन में पचास प्रतिशत समाज की हिस्सेदारी को नगण्य घोषित किया जा रहा है उसको जानबूझ कर उपेक्षित किया जा रहा है क्या वैसा आन्दोलन वास्तव में दलित आन्दोलन हो सकता है? क्या दलित आन्दोलन के आधार स्तम्भ समता, समानता, बंधुत्व नहीं होने चाहिएं? क्या उसमें सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘जारसत्ता’ से उत्पन्न चरित्रहनन की बात होगी? क्या दलित साहित्य दलित समाज की अन्य समस्याओं को छुऐगा भी नहीं? दलित महिलाओं के बारे में सोचते समय उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर केवल उनकी यौनिक्ता  के मुद्दे  ही क्यों चर्चा में लाए जाते हैं? दलित महिलाओं के संघर्ष का आज के दलित आन्दोलन में क्या स्थान है?  क्या दलित साहित्यकार अम्बेडकर,  बुद्ध, फूले का  बेबुनियादी विरोध करके भी दलित साहित्यकार कहलाने लायक है? ये साहित्यकार मानवता का दामन छोड़कर अमानवीय होकर दलित चेतना की वकालत आखिर कब तक करेगें? बहस खुली है। दलित स्त्रियां जवाब चाहती हैं। उन्हें अपनी अस्मिता और अस्तित्व की पहचान की रक्षा के लिए जवाब चाहिए। जो अपने आप को दलित साहित्यकार समझतें हैं, और जो धर्मवीर के स्त्री विरोधी लेखन का मौन और साथ रहकर समर्थन कर रहे हैं, दलित महिलाएं  उनसे  भी जवाब चाहती हैं अन्यथा धर्मवीर के साथ-साथ वो भी अपने आप को सवालों के कटघरे में खड़े देखेंगे। आने वाल समय  से साहित्यकारों को जिनका प्रगतिशील चिंतन से कोई वास्ता नहीं है, जो एक मूल मंत्र “अवसरवाद” को लेकर चल रहे हैं, उनको कभी माफ नहीं करेगा। और दलित स्त्रियां तो कभी माफ नहीं करेंगी। धर्मवीर तो मात्र प्रतीक हैं. जो भी धर्मवीर बनने की कोशिश करेगा दलित महिलाएं उस साहित्यकार और उसके लेखन का हर स्तर पर विरोध करेंगी चाहे वह विरोध किसी को आक्रमक ही क्यों ना लगे।
छात्र जीवन से ही दलित आंदोलन में सक्रिय अनीता भारती ने कुछ समय तक दलित पत्र ‘मूकनायक’ का संपादन किया व सामाजिक क्रांतिकारी गब्दूराम बाल्मीकि पर एक महत्त्वपूर्ण पुस्तिका लिखी. पत्र-पत्रिकाओं में दलित-आदिवासी महिलाओं के मुद्दों पर निरंतर विभिन्‍न विधाओं में लिखने वाली, पेशे से अध्‍यापिका अनीता ‘दलित लेखक संघ’ की महासचिव हैं. बिरसा मुंडा सम्मान, वीरांगना झलकारी बाई सम्मान, समेत कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानित अनीता से anita.bharti@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

" दलित महिला विरोधी डॉ. धर्मवीर? " को 6 प्रतिक्रियाएँ

  1. kuch log ye samj rahen hain ki dalit aandolan keval ve hi chala rahe hain apne niji vigyapan ke liye ambedkarvad aur dalit sahityakar hone ka dava thokne vale log andolan se jitna jaldi bahr ho jaye utna andolan ka bhala hoga ab jao aapne kafi nam paise kama liye andolan ke liye kam karnevalo ko kam karne do baki sab office main apni apni toli ke sath debate chalo .bhukho-nango ko ye debate kuch paka kar degi kya?
  2. अनीता जी…आपका लेख काफी संतुलित लगा. डा धर्मवीर अपने इस इलहाम से किसका भला कर रहे हैं…समझना मुश्किल है..
  3. अनीता जी, रजनी जी और दलित विमर्श से जुड़े कई साथी डॉ धर्मवीर की कुत्सित लेखनी पर कलम, आवाज़ और चप्पल उठा चुके हैं. जिनमें मैं ख़ुद भी शामिल हूँ (साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ के पन्नों पर कुछ माह पूर्व ही मैंने इस पर लिखा है). मुझे एक आश्चर्य ये है की अभी कुछ ही दिन पहले एक बहुत रसूखवाले कुलपति/साहित्यकार को, केवल एक शब्द पर माफ़ी मांगने पर मजबूर कर देनेवाले हिंदी समाज ने कभी इस तरह का दबाव धर्मवीर पर क्यों नहीं बनाया? अपने बच्चों को, उनकी माँ के सार्वजनिक चरित्रहनन द्वारा, ज़िल्लत देने वाले और महिलाओं पर कीचड़ उछालनेवाले इस बुध्हिजिवी की बुनियादी समझ पर ही सवाल उठाना चाहिए.
  4. k P maurya says:
    आपका आलेख पढ़ा . आपने लिखा हैं की डॉ. धरमवीर का जो दलित लेखक , पत्रकार , पत्र-पत्रिकायों के सम्पादक उनका विरोध नहीं करते वे डॉ. धरमवीर की सूचि में हैं , उन्होंने कुछ महिलों के बारे में गलत टिप्पड़ी की, उनका तर्क हो सकता है , इस पर सारे दलित लेखक या पत्रकार दोषी कैसे हो सकते हैं ? जिहोने अपने निजी स्वार्थ के चलते कुछ दलितों ने प्रेम विवाह किया, क्या वे सभी शादी के बाद अम्बेडकरवादी हो गए ? सभी बुद्धिस्ट हो गए ?? इससे उनका हित हो हुआ , लेकिन दलितों की आबादी कम हो गई ……….जनगड़ना में आर्क्छित सीटें कम हो गईं …. बौद्ध भी (हिन्दू , सिख बौद्ध) सभी आरक्चन के दावेदार हैं .यदि वे आरकछन का लाभ नहीं लेते तो सामान्य सूचि में आ जाते हैं उनकी अलग पहचान कैसे हुई .घाटा तो दलितों को ही हुआ ??? जिन दलित महिलाओं ने उच्च जाती में शादी की वे भी आरकछन का लाभ ले रही हैं ,,,,,,,,जिन उच्च पदों (आई ए एस/आई पी एस , डॉकटर , प्रोफेस्सर ,एन्गीनिअर आदि पर आसीन दलितों ने प्यार के चलते गैर -दलित (ब्रह्मण या वानियाँ ठाकुर आदि ) लड़की से शादी की .. उससे दुसरे दलितों को किया लाभ हुआ?? इसे बाद में आंबेडकर के सिधान्तों का रूप देना दलितों के साथ धोखा है ………हम (दलित ) तो जातिवाद मिटाना चाहते हैं लेकिन उच्च जाती के लोग तो नहीं ……….मान भी लें की दलित महिला या पुरुष जातिवाद मिटाने आंबेडकरवाद को स्थापित करने के लिए गैर -दलित से शादी कर रहे हैं तो ……..कितने ऐसे दलित महिला या पुरुष हैं जो अनपढ़ थे …..बेरोजगार थे , आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी ,, गैर – दलितों ने उन्हें अपनाया ??????????????????? कई प्रश्न हैं , जिनपर चर्चा होनी है ……….डॉ. धरमवीर या कोई दूसरा व्यक्ति अमानवीय बातें करे तो दलित या गैर -दलित कोई भी स्वीकार नहीं करेगा . भारतीय संविधान सभी को स्वतंत्रता देता है अपनी बात कहने की ………बोलने की …..कौन सहमत है .कौन नहीं यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है . इसमें सभी एकमत होंगे जरूरी तो नहीं ……….वैचारिक मतभेद हो सकते हैं ,, लेकिन मनभेद नहीं होने चाहिए ..
  5. aapne achhi janakariya dali hai, yeh patr samane aana chahiye tha,
  6. डॉ. धर्मवीर दलित साहित्‍य में बड़ा नाम हैं. उनकी लेखनी हमें हमेशा दृष्टि देती रही है. पर अनीताजी आपको पढ़ कर और जो कुछ डॉक्‍युमेंटरी प्रुफ़ आपने यहां दिया है, उनके आधार पर फिलहाल मैं बहुत दुविधा की स्थिति में हूं. इतना प्रगतिशील आदमी (धर्मवीर सिर्फ आदमी नहीं, एक सुलझे हुए व्‍यक्तित्‍व के स्‍वामी हैं) दलित औरतों के बारे में इस तरह के खयाल रखता है. और फिर दुनिया को पाठ पढाने निकलता है. फिर तो शंका वाजिव है. मैं सचमूच दुविधा में हूं अनीताजी. मैं तो चाहूंगा अगर धर्मवीरजी चाहें तो हम जैसे बहुत से दलितों और प्रगतिशील समाज का स्‍वप्‍न देखने वालों को इस स्थिति से उबार सकते हैं. उन्‍हें बस अपना पक्ष रख देना होगा यहां. मेरे खयाल से सरोकार एक अच्‍छा मंच है, जहां कायदे से बातचीत की गुंजाइश है.
    फिलहाल को यही कि अनीताजी आपने कुछ सवाल को छोड़ ही दिए हैं डॉ. साहब के प्रति. शायद यह अच्‍छा ही किया है आपने. आपका शुक्रिया.