Written by शेष नारायण सिंह
दिल्ली के उपनगर, उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोयडा में एक गाँव के लोग इसलिए बेईज्ज़त किये जा रहे हैं कि वे जाटव हैं. यह मामला इसलिए और भी हैरतअंगेज़ है कि जिस गाँव की यह खबर है उससे बहुत करीब के एक गाँव की एक लड़की उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री है. दलितों के सम्मान के अभियान के नायक डॉ अंबेडकर के विचारों को लागू करने के लिए बनायी गयी पार्टी का उत्तर प्रदेश में शासन है और वहीं मुख्यमंत्री के जिले में दलितों का अपमान इसलिए किया जा रहा है कि ऊंची जाति की किसी लड़की ने एक दलित लड़के से दोस्ती की, उससे प्रेम किया और सवर्ण आतंक से बचने के लिए अपने प्रेमी के साथ घर छोड़ कर कहीं भाग गई. अब खबर आई है कि सवर्ण दबंगों ने गाँव के दलितों को हुक्म सुना दिया है कि वे लोग उनकी बिरादरी की लडकी को फ़ौरन से पेशतर हाज़िर करें वरना, उनके परिवार की लड़कियों को उठा लिया जाएगा. इसके बाद पुलिस फ़ौरन हरकत में आ गई और तुगलकी फरमान जारी करने वालों को पकड़ लिया गया और बताया गया है कि उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी रासुका के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है. इसके बाद वे ख़ासा वक़्त जेलों में बितायेगें और सारी हेकड़ी भूल जायेगें.
सवाल यह उठता है कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हमारी राजनीतिक बिरादरी ने जाति के इस खूंखार भूत को दफन करने में सफलता क्यों नहीं पाई. हमारी आज़ादी का इथोस यही था कि बराबरी पर आधारित एक भारतीय समाज की स्थापना की जाएगी. महात्मा गाँधी ने तो आर्थिक और राजनीतिक आज़ादी के साथ ही छुआछूत के खात्मे को भी रख दिया था जबकि राम मनोहर लोहिया और डॉ अंबेडकर ने साफ़ कहा था कि जाति की संस्था का ही विनाश हो जाना चाहिए. डॉ अंबेडकर का साहित्य बहुत बड़ा है लेकिन उनकी सबसे मह्त्वपूर्ण किताब का नाम है ," जाति का विनाश ". इस किताब में साफ़ लिखा है जब तक सभी जातियों के लोग आपस में शादी ब्याह नहीं करने लगेगें, जाति का विनाश हो ही नहीं सकता. अब दुनिया भर के समाज शास्त्री और राजनीति विज्ञान के ज्ञाता इस बात पर सहमत हैं कि अगर भारत में जाति प्रथा समाप्त हो जाए, तो विकास की गति इतनी तेज़ हो जाएगी कि बहुत कम वक़्त में यह दुनिया की एक मज़बूत ताक़त बन जाएगा. हमारे अपने नेता भी इस बात को सही मानते हैं. जो बात समझ में नहीं आती, वह यह कि इस सबके बावजूद जाति की प्रथा को ख़त्म करने के लिए कोशिश क्यों नहीं की जाती? इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता क्यों नहीं बनाया जाता?
अगर जातिप्रथा को ख़त्म कर दिया गया तो देश की बहुत सारी समस्याएं अपने आप ख़त्म हो जायेगीं . सबसे बड़ा तो यही कि अलग जाति में शादी करने के कारण हो रही हिंसक वारदातें अपने आप शांत हो जायेगीं. उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में सामाजिक सर्वनाश का एक और ज़हर घुल गया है जिसे दहेज़ के नाम से जाना जाता है. आज दहेज़ इतना खूंखार रूप धारण कर चुका है कि वह समाज को तबाह करने के कगार पर है. बेटी के बाप को अपना खेत खलिहान बेच कर बेटी ब्याहनी पड़ रही है क्योंकि पारंपरिक रूप से तय बिरादरी और गोत्र में ही शादी करनी है. अगर जाति प्रथा का विनाश हो गया तो यह सारी स्थितियां अपने आप ख़त्म हो जायेगीं. पहले माना जाता था कि जाति के विनाश में सबसे बड़ी बाधा तथाकथित ऊपरी जातियां हैं, वहीं नहीं चाहतीं कि जाति का विनाश हो. लेकिन अब साफ़ हो गया है कि ऐसा नहीं है. वास्तव में जाति के विनाश में सबसे बड़ी बाधा वे राजनीतिक पार्टियां हैं जो जाति को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. दुःख की बात यह है कि जाति के विनाश के दर्शनशास्त्र के सबसे बड़े हिमायती डॉ अंबेडकर के विचारों को लागू करने के लिए बनायी गयी पार्टी भी इस दिशा में कोई पहल नहीं कर रही है. इसके पलट बहुजन समाज पार्टी सारी जातियों को अलग-अलग खांचों में फिट करके उनका वोट लेने की राजनीति पर काम कर रही है. कई नेताओं से बातचीत के आधार पर भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि राजनीतिक बिरादरी जाति को ख़त्म करने के पक्ष में हैं ही नहीं. उनका यह तर्क है कि जब तक एक सामाजिक आन्दोलन नहीं होगा, जाति प्रथा को ख़त्म नहीं किया जा सकता. लेकिन अनुभव बताता है कि इस तर्क में कोई दम नहीं है. उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में सफाई कर्मियों की भर्ती हुई है. पारंपरिक रूप से सफाई कर्मी दलित जातियों के होते रहे हैं लेकिन सरकारी नौकरी के चक्कर में बड़ी संख्या में ब्राह्मणों और ठाकुरों के बच्चे भर्ती हो गए हैं. ज़ाहिर है सफाई कर्मी बनने वाले सवर्ण जातियों के लोग अपने को जाति के खेल में ऊंचा मानने से बाज़ नहीं आयेगें लेकिन जन्मना जाति के ब्राह्मणवादी शिकंजे से अलग होने का ऐलान सफाईकर्मी की भर्ती की इस व्यवस्था ने कर दिया है. और इसके लिए कोई सामाजिक आन्दोलन नहीं चलाया गया. इसी तरह से और भी पहल की जा सकती है. लेकिन यह पहल अनजाने में हुई है. दुर्भाग्य की बात यह है कि जाति के नाम पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आतंक मचा रही पंचायतों के खिलाफ ठीक से पुलिस कार्रवाई तक नहीं हो रही है. जाति के बाहर जाकर शादी करने वाले लड़के लड़कियों को दिल्ली के आस पास के शहरों में रोज़ मारा पीटा जा रहा है और क़त्ल किया लेकिन उनकी रक्षा के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है.
जाति की पुरातनपंथी सोच को ख़त्म करने के लिए डॉ अंबेडकर की विरासत की उत्तराधिकारी, मायावती को फ़ौरन पहल करनी चाहिए क्योंकि अगर वे जाति ख़त्म करने में सफल हो गयीं तो राजनीति के इतिहास में वे अमर हो जायेगीं. जिस तरह से मार्क्स के विचारों को लागू करके लेनिन महान हो गए, उसी तरह अगर मायावाती चाहें तो डॉ भीम राव अंबेडकर के जाति के विनाश संबंधी विचारों को लागू करके आने वाली पीढ़ियों के सामाजिक ताने बाने पर अपना अमिट छाप छोड़ सकती हैं.
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