Written by अशोक
आदिवासी हितों की आवाज बुलंद करने वाले प्रखर आदिवासी नेता एवं भाजपा के बस्तर से सांसद बलिराम कश्यप का गुरुवार को तड़के निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार उनके गृहग्राम फरसगुडा (भानपुरी) बस्तर में किया गया. वह 75 वर्ष के थे और पिछले काफी समय से अस्पताल में भर्ती थे. कश्यप बस्तर से तीन बार विधायक रहे हैं और तीन बार सांसद भी रहे हैं. वह अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री भी थे. आदिवासी हितों के सवाल पर कश्यप किसी की परवाह नहीं करते थे और कभी-कभी अपनी पार्टी से भी उलझ जाते थे.
बस्तर और छत्तीसगढ़ के विकास में श्री कश्यप का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान था. उन्हें लौह पुरुष और ‘बस्तर का शेर’ भी कहा जाता था. जिस छत्तीसढ़ को नक्सलवाद के लिए जाना जाता है, वहां की समस्या को उन्होंने बखूबी पहचाना था और इसे दूर कर आदिवासियों के जीवन को बेहतर और खुशहाल बनाने के लिए वह अपने स्तर से ताउम्र लगे रहे. उन्होंने ऐसे कई काम किए हैं, जिसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा. कोसारडेरा बांध उनका ही सपना था. बस्तर में रेल लाइन, अधोसंरचना, मेडिकल कालेज आदि न जाने कितने जगहों पर उनकी यादें आज भी शेष हैं. बस्तर के इमली आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ हुई बैठक में उन्होंने जिस तरह बेखौफ होकर अपनी बात कही थी, उससे उनके साथी तक दंग रह गए थे. वह न केवल आदिवासियों के बल्कि छत्तीसगढ़ के पिछड़ेपन की आवाज थे. हालांकि वो जिन आदिवासियों के लिए लड़ते रहें, उन्हीं से उपजे नक्सलवाद के कारण उन्हें बहुत कुर्बानियां देनी पड़ी. वर्ष 2009 में बलिराम कश्यप के दो बेटों तानसेन और दिनेश पर माओवादियों ने बस्तर में घात लगाकर हमला कर दिया था. इस हमले में तानसेन की मौत हो गई थी जबकि दिनेश गंभीर रूप से घायल हुए थे. हमले में बलिराम के एक और पुत्र केदार, जो छत्तीसगढ़ की सरकार में मंत्री हैं, बाल बाल बच गए थे.
कश्यप अपने विचारों को भी खुल कर कहते थे और इससे उठने वाले किसी भी बवाल की चिंता नहीं करते थे. स्थानीय नेताओं में उनका रुतबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी बलीराम कश्यप को ‘बली दादा’ कह कर संबोधित करते थे. सलवा-जुडूम समेत कई मुद्दों पर जोगी के साथ उनके वैचारिक मतभेद थे. लेकिन वैचारिक स्तर मतभेद के बावजूद व्यक्तिगत जीवन में हर कोई उनकी इज्जत करता था. जोगी ने उनकी याद में कहा भी 'बली दादा राजनीति के चार स्तंभो में से सबसे मजबूत स्तंभ थे. उनकी पूर्ति करने वाला नेता मिलना मुश्किल है.' मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की राजनीति में जब-जब दृढ़ इच्छाशक्ति, आदर्शों व सिद्धांतों की बात की जाएगी, तब-तब उनके जैसे व्यक्तित्व का उल्लेख किया जाएगा.
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