Saturday, March 12, 2011

जहां मंदिर में दलित ही होता है पुजारी

Written by Dalitmat
सदियों से दलितों को मंदिरों से और पूजा-पाठ से दूर रखा जाता रहा था. वर्तमान में स्थिति काफी सुधरी है. बावजूद इसके आज भी कई जगहों से दलितों को मंदिरों में प्रवेश से रोके जाने की खबरें आती रहती है. लेकिन उत्तर प्रदेश में एक मंदिर ऐसा है जिसका पुजारी पिछले दो सौ सालों से दलित जाति से संबंध रखने वाला व्यक्ति होता है. यह मंदिर इटावा जिले के लखना कस्बे में है. मां काली के इस मंदिर की परंपरा है कि इसका पुजारी इलाके के एक दलित परिवार का ही कोई न कोई सदस्य होता है.

फिलहाल यमुना नदी के तट पर स्थित लगभग दो सौ साल पुराने मंदिर के पुजारी दो सगे भाई अखिलेश (45) और अशोक (43) हैं. मान्यता के अनुसार मंदिर का निर्माण तत्कालीन लखना रियासत के राजा जयपाल सिंह ने करवाया था. उनकी काली मां में बहुत आस्था थी. एक बार उन्होंने स्वप्न देखा कि यमुना किनारे स्थित पुराने सूखे पीपल के पेड़ के नीचे काली मां की मूर्ति गढ़ी है. राजा ने उस सूखे पीपल के पेड़ को कटवाया तो उसमें से मूर्ति निकली. फिर उन्होंने उसी जगह पर भव्य और विशाल काली मंदिर की स्थापना करवा दी. माना जाता है कि मंदिर के निर्माण कार्य की जिम्मेदारी सवर्ण जाति के एक मुलाजिम के पास थी. जब मंदिर बन रहा था तो इस सवर्ण मुलाजिम ने मजदूरी करने वाले एक दलित मजदूर के साथ काफी दुर्व्यवहार किया. इसे देखकर राजा बड़े दुखी हुए. उन्होंने महसूस किया कि दलितों को समाज में सम्मान नहीं मिलता और उन्हें हीन भावना का अहसास होता है. यह बात राजा को इतनी परेशान करने लगी कि उन्होंने दलितों को सम्मान देने की ठान ली. एक नया इतिहास रचते हुए उन्होंने घोषणा किया कि काली माता के मंदिर का पुजारी यही दलित मजदूर और उसके परिवार के सदस्य होंगे.
जिस दलित व्यक्ति के साथ राजा के कारिंदे ने बदतमीजी की थी उसका नाम छोटेलाल था. मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के साथ ही राजा ने उन्हें पुजारी की जिम्मेदारी सौंप दी. तब से लेकर आज तक इस मंदिर में पूजा-अर्चना का काम पीढ़ी दर पीढ़ी उनका ही परिवार कर रहा है. वर्तमान समय की बात करें तो दलित पुजारी के प्रति लोगों में सम्मान का भाव है और इस प्रथा से समाज के सवर्ण वर्ग अथवा ब्राह्मणों को भी कोई गुरेज नहीं है. दूर-दूर से हर वर्ग के लोग आकर काली मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. परंतु आज तक के इतिहास में किसी ने भी दलित पुजारी के मुद्दे को लेकर अपना विरोध दर्ज नहीं कराया है. मंदिर के वर्तमान पुजारी अशोक कहते हैं कि हमारी पीढ़ियां राजा जयपाल की ऋणी रहेंगी, जिनके उपकार की बदौलत हमारी चार पीढ़ियों को इतना आदर मिला. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु हमें बहुत सम्मान और आदर देते हैं. लोगों ने हमें कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि हम दलित हैं. स्थानीय लोग इस काली मंदिर को समता की एक मिसाल मानकर गर्व महसूस करते हैं. गांव वालों के मुताबिक वह इस परंपरा का सम्मान करते हैं. यह परंपरा आपसी सदभाव की एक मिसाल है.

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