Wednesday, June 8, 2011

हमारे देवी-देवताओं के जननेंद्रिय नहीं होते

 विभा रानी
the-vagina-monologues1नया ज्ञानोदय के अप्रैल 2009 अंक में प्रकाशित सुप्रसिद्ध मलयाली कवि के सच्चिदानंद की एक कविता उद्धृत है
मैं एक अच्छा हिन्दू हूं
खजुराहो और कोणार्क के बारे में मैं कुछ नहीं जानता
कामसूत्र को मैंने हाथ से छुआ तक नहीं
दुर्गा और सरस्वती को नंगे रूप में देखूं तो मुझे स्वप्नदोष की परेशानी होगी
हमारे देवी-देवताओं के जननेंद्रिय नहीं होते
जो भी थे उन्हें हमने काशी और कामाख्या में प्रतिष्ठित किया
कबीर के राम को हमने अयोध्या में बंदी बनाया
गांधी के राम को हमने गांधी के जन्मस्थान में ही जला दिया
आत्मा को बेच कर इस गेरुए झंडे को खरीदने के बाद
और किसी भी रंग को देखूं तो मैं आग-बबूला हो जाऊंगा
मेरे पतलून के भीतर छुरी है
सर चूमने के लिए नहीं, काट-काट कर नीचे गिराने के लिए…
यह मात्र संयोग ही नहीं है कि हम कहीं भी कभी भी प्यार की बातें करते सहज महसूस नहीं करते। यहां प्यार से आशय उस प्यार से है, जो सितार के तार की तरह हमारी नसों में बजता है, जिसकी तरंग से हम तरंगित होते हैं, हमें अपनी दुनिया में एक अर्थ महसूस होने लगता है, हमें अपने जीवन में एक रस का संचार मिलाने लगता है। मगर नहीं, इस प्यार की चर्चा करना गुनाह है, अश्लीलता है, पाप है और पता नहीं, क्या-क्या है। हमारे बच्चों के बच्चे हो जाते हैं, मगर हम यह सहजता से नहीं ले पाते कि हमारे बच्चे अपने साथी के प्रति प्यार का इज़हार करें या अपने मन और काम की बातें बताएं। और यह सब हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति के नाम पर किया जाता है।
अभी-अभी एक अखबार में पढ़ रही थी फिल्म निर्माता राकेश रोशन का इंटरव्यू। उनकी फिल्म काईट के बारे में, जिसमें उनके अभिनेता बेटे ने चुम्बन का दृश्य दिया है। साक्षात्कार लेनेवाले की परेशानी यह थी कि यह चुम्बन का दृश्य हृतिक रोशन ने किया कैसे, और एक पिता होने के नाते राकेश रोशन ने यह फिल्माया कैसे और उसे देखा कैसे? बहुत अच्छा जवाब दिया राकेश रोशन ने कि अब इस फिल्म में मैं प्रेम के लिए चुम्बन नहीं दिखाता तो क्या हीरो- हीरोइन को पेड़ के पीछे नाचता-गाता दिखाता? जान लें कि इस फिल्म कि नायिका भारतीय नहीं है। राकेश रोशन ने कहा कि एक अभिनेता के नाते उसने काम किया है, वैसे ही, जैसे उसने कृष में लम्बी-लम्बी छलांगें लगायी थीं।
जिस प्रेम से हमारी उत्पत्ति है, उसी के प्रति इतने निषेध भाव कभी-कभी मन में बड़ी वितृष्णा जगाते हैं। आखिर क्यों हम प्रेम और सेक्स पर बातें करने से हिचकते या डरते हैं? ऐसे में सच्छिदानंदन जी की बातें सच्ची लगती हैं कि हमारे देवी-देवताओं के जननेंद्रिय नहीं होते, और अब उन्हीं के अनुकरण में हमारे भी नही होते। आखिर हम उन्हीं की संतान हैं न। भले वेदों में उनके शारीरिक सौष्ठव का जी खोल कर वर्णन किया गया है और वर्णन के बाद देवियों को माता की संज्ञा दे दी जाती है, मानो माता कह देने से फिर से उनका शरीर, उनके शरीर के आकार-प्रकार छुप जाएंगे। वे सिर्फ एक भाव बनाकर रह जाएंगी।
यक्ष को दिया गया युधिष्ठिर का जवाब बड़ा मायने रखता है कि अगर मेरी माता माद्री मेरे सामने नग्नावस्था में आ जाएं तो मेरे मन में पहले वही भाव आएंगे, जो एक युवा के मन में किसी युवती को देख कर आते हैं। फिर भाव पर मस्तिष्‍क का नियंत्रण होगा और तब मैं कहूंगा कि यह मेरी माता हैं।
समय बदला है, हम नहीं बदले हैं। आज भी सेक्स की शिक्षा बच्चों को देना एक बवाल बना हुआ है। भले सेक्स के नाम पर हमारे मासूम तरह-तरह के अपराध के शिकार होते रहें। आज भी परिवारों में इतनी पर्दा प्रथा है कि पति-पत्नी एक साथ बैठ जाएं, तो आलोचना के शिकार हो जाएं। अपने बहुचर्चित नाटक वेजाइना मोनोलाग के चेन्नई में प्रदर्शन पर बैन लगा दिये जाने पर बानो मोदी कोतवाल ने बड़े व्यंग्यात्मक तरीके से कहा था कि इससे एक बात तो साबित हो जाती है कि मद्रास में वेजाइना नहीं होते।
देवी-देवता की मूर्ति गढ़ते समय तो हम उनके अंग-प्रत्यंग को तराशते हैं, मगर देवी-देवता के शरीर की काट कोई अपनी तूलिका से कर दे तो वह हमारे लिए अपमान का विषय हो जाता है। हमारी समझ में यह नही आता कि इस दोहरी मानसिकता के साथ जी कर हम सब अपने ही समाज का कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं। देवी-देवता को हम भोग तो लगाते हैं, देवी देवता का मंदिरों में स्नान-श्रृंगार, शयन सब कुछ कराते हैं, मगर देवी-देवता अगर देवी-देवता के जेंडर में हैं, तो हम उनके लिंग पर बात क्यों नहीं कर सकते? आज भी सेक्स पर बात करना बहुत ही अश्लील मना जाता है। और यह सब इसलिए है कि हम सब इसके लिए माहौल ही नहीं बना पाये हैं। एक छुपी-छुपी सी चीज़ छुपी-छुपी सी ही रहे, हर कोई इसे मन में तो जाने मगर इस पर बात न करे, इस पर चर्चा न करे। ऐसे में हमारे साथ आप सबको भी यकीन करना होगा कि हमारे देवी-देवताओं के जननेंद्रिय नहीं होते और उनके अनुसरण में हमारे भी।

2 comments:

  1. bhai aapke blog par pahli bar aaya. lekin bhale sarsari padha lekin kai post dekh gaya.aapki vidvata aur parishram ka kaun bewaqoof qaayal na hoga.

    ab hamesha aane ki koshish hogi.

    aabhaar ki aapne mere blog rachna sansaar ka link diya hai.
    yadi hamzabaan ka bhi de den to atirikt sadhuwaad ho!

    aajkal hamzabaan par hi kuch khurafaten karta rahta hun.

    vibha ji ki yeh post hamzabaan par lagana chah raha hun.
    sandarbh husain ka .ho jayega.

    yadi aap aagya den to yeh gustakhi karun.

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  2. अन्य धर्मों में क्या है?
    क्या आप इसी साहस और खुलेपन से अन्य धर्म पर टिप्पणी कर सकते हैं ?

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