Thursday, April 28, 2011


दलित महिला विरोधी डॉ. धर्मवीर?


अनीता भारती

12 सितम्बर 2005 को राजेन्द्र भवन में धर्मवीर  की पुस्तक ‘प्रेमचंद सामंत का मुंशी’ के लोकार्पण का दलित महिलाओं ने सशक्त विरोध किया। दलित महिलाओं ने धर्मवीर के दलित स्त्री विरोधी लेखन के खिलाफ न केवल नारे लगाए अपितु उन पर चप्पल भी फेंक कर मारी। सवाल उठता है कि आखिर दलित महिलाओं को धर्मवीर के खिलाफ इतने कडे़ विरोध में क्यो उतरना पडा।  हम थोडा अतीत में झांक कर देखें तो 22-23 जलाई 1995 को साउथ एवन्यू के एम.पी हॉल में आयोजित ‘हिन्दी दलित साहित्य सम्मेलन में’ धर्मवीर का ऐसा ही विरोध हुआ था। दलित महिलाओं ने उनके लेखन के खिलाफ नारे लगाते हुए उन्हे मंच से खींच लिया था। तथा उनके लेखन का बहिष्कार करने की पुरज़ोर अपील की थी। तब इन महाश्य ने दलित महिलाओं से सार्वजनिक रूप से माफी मांगी थी और कसम खाई थी कि वे आईंदा दलित महिला विरोधी लेखन नहीं करेंगे।
सौजन्‍य : blog.insightyv.com

1995 से लेकर 2005: दोनों  बार अपनी सार्वजनिक बेइज्जती भूलकर लगातार निर्लज्जता से दलित/गैर दलित स्त्रियों के खिलाफ अश्लील व आपत्तिजनक सस्ता लेखन कर रहें हैं। ‘कथादेश’ में चली बहस इसकी गवाह है। पिछले सालों  से धर्मवीर का लेखन उत्तरोत्तर दलित/गैर  दलित स्त्री विरोधी होता जा रही है। कोई ताकत उनको अनर्गल लिखने से नहीं रोक पा रही है क्योंकि वे किसी भी तर्क, विचार, सिद्धान्त और दर्शन को मानने को तैयार  नहीं है। धर्मवीर और लेखन मानवतावाद की स्थापना के खिलाफ अमानवीयता के झण्डे गाड़ना चाहता है। वह दबी कुचली दलित/गैर दलित स्त्री की अस्मिता को स्वीकारने को तैयार नहीं है। वे उसको चरित्रहीन सिद्ध करने पर तुले हैं और हद तो इस बात की है कि जो स्त्री उनके खिलाफ़ बोलने की हिम्मत रखती है उसकी तो वे सरे आम नाक, चोटी काटकर वेश्या घोषित कर पत्थर मारकर हत्या तक कर देने की हिमायत कर रहें है। वे अपनी कपोल कल्पित भौंडी कल्पना के सहारे प्रेमचन्द की ‘कफ़न’ कहानी की नायिका बुधिया का बलात्कार हुआ दिखाकर बुधिया के पेट में ठाकुर का बच्चा बताकर उसके भ्रुण परीक्षण की बात कर रहे हैं।
डॉ. धर्मवीर दलित साहित्यकार होते हुए भी वर्ण व्यवस्था को बरकरार रखना चाहते हैं, इसलिए वो अन्तरजातीय विवाह का कट्टर विरोध करते हैं, जो कि अम्बेडकर के
डॉ. धर्मवीर की चिट्ठी अनीता भारती के नाम, सौजन्‍य: अनीता भारती
जाति उन्मूलन दर्शन का एक आधारभूत स्तम्भ है। वे कहते  हैं, ‘दलित नारी के साथ गै़र दलितों द्वारा जो विवाह-बाह्य मैथुन होता है  वह जारकर्म नहीं होता बल्कि बलात्कार और केवल बलात्कार होता है।’ विवाहित स्त्री के अन्य पुरुषों के साथ सम्बन्ध को धर्मवीर जी ‘जारकर्म’ कहते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि दलित स्त्रियाँ केवल अपने समाज के दलित पुरुषों से ही शादी करें, अन्य जाति के पुरूषों के साथ अपनी मर्जी से की गई शादी के बावजूद भी उनका बलात्कार होगा। भला धर्मवार ये कौम सा दर्शन दलित समाज को अम्बेडकरवादी विचारधारा के खिलाफ दे रहें हैं?
डॉ. धर्मवीर वर्णव्यवस्था को मजबूत कर लिंगीय समानता के खिलाफ लिख रहें है। डॉ. धर्मवीर किसी हिन्दू मनुस्मृतिकार की तरह दलित औरतों को पितृसत्तात्मक समाज में उनके सामने ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के संरक्षक बन कर उन्हें मात्र घर की चार दीवारी में सिमटा देखना चाहते हैं। इसके अलावा अगर किसी औरत ने उनके इस सांमतवादी लेखन के खिलाफ आवाज़ उठाई तो उनके खिलाफ फतवा जारी कर देगें। उनके विचार से ‘ऐसी सोच वाली स्त्री अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहती है तो लड़े। रखैल के रूप में अधिकार मांगे, वेश्या के रूप में अपने दाम बढ़वाए और देवदासी के रूप में पुजारी की सम्पति में हाथ मारे ” (प्रेमचन्द सामन्त का मुंशी).  असल बात यह है कि धर्मवीर दलित स्त्री पर सौ फीसदी कब्जा चाहते हैं। अगर वह काबू में आ जाती है तो ठीक है, नहीं तो उन्होंने उसके लिए वेश्या, रखैल, देवदासी आदि सम्बोधन तो रखे हैं ही।
डॉ. धर्मवीर ‘जारसत्ता’ को अपना मौलिक चिन्तन बताकर, उसे स्थापित कर अरस्तू की तरह दार्शनिक बनना चाहते हैं। पहले उनको उनके कुछ सहयोगी लेखकों ( प्रत्यक्ष रुप से श्योराज बैचेन, कैलाश दहिया, दिनेश राम,  अप्रत्यक्ष रुप से वो लेखक जो  चुप्पी मारे बैठे हैं या फिर अपनी पत्रिकाओं में धर्मवीर के लेख ,इन्टरव्यू छाप कर) ने धर्मवीर को  डॉ. अंबेडकर घोषित करने की नाकाम कोशिश की, चेतनशील दलित साहित्यकारों ने जब इनका डॉ अम्बेडकर बनने का सपना पूरा ना होने दिया तो वे अब दार्शनिक बनने चले। जो लोग पहले इन्हें अम्बेडकर घोषित करने की कुचेष्ठा कर रहे थे अब वे ही इन्हें ‘जारसत्ता’  दर्शन का  जनक घोषित करने की पूर्ण कोशिश में लगे हैं। इनके लेखन की तर्ज पर ही इनके दर्शन की शिकार भी ग़रीब-दलित औरतें ही हैं। इनके मतानुसार दलित स्त्रियों को केवल और केवल एक ही काम है और वह है ‘जारकर्म’। डॉ धर्मवीर का कहना है ‘दलित/गैर दलित स्त्रियों के इस ‘जारकर्म’ की हिमायत में भारत का कानून भी लिप्त है. कानून के हिसाब से भारत की हर  पत्नी ‘जारकर्म’  से जितने चाहे बच्चे पैदा कर सकती है। कानून को इस बात से कोई ऐतराज नहीं है कि वह ऐसा करती है। इसलिए हिन्दुस्तान के इस कानून को पढ़कर यदि कोई अंदाज़ा  लगाए कि भारत की नारियों के चरित्र कैसे हैं तो वह क्या ग़लती करता है?’ (‘अस्मितावाद बनाम वर्चस्ववाद’ कथादेशअप्रैल 2003) तात्पर्य यह है कि उनके अनुसार आज भारत की दलित -   गैर दलित  स्त्री के सामने  सामाजिक, आर्थिक से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य, अस्मिता के कोई मुद्दे नहीं हैं। अगर स्त्री पर चर्चा होगी तो केवल उसके ‘जारकर्म’ की। इन लेखकों को दलित-गैर दलित महिलाओं के संघर्ष और त्याग से कोई सरोकार नहीं है उसका एक ही उद्देश्य है कि वे कैसे सिद्ध करें कि भारतीय स्त्री चरित्रहीन है। वे स्त्रियों के तन-मन  पर पूरा कब्जा चाहते हैं। धर्मवीर स्त्रियों के संदर्भ में  यौन  शुचिता का प्रश्न उठाकर अपने मनुवादी अहम की पुष्टि कर रहे हैं। वे दलित/गैर दलित स्त्रियों को अपनी सम्पत्ति मानते हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘थेरीगाथा की स्त्रियां’ की भूमिका में कहा है “अपनी पुस्तक के शीर्षक के

जनसत्ता में संपादक के नाम अनीता भारती का पत्र. सौजन्‍य: अनीता भारती
पद ‘थेरीगाथा की स्त्रियां मैंने जानबूझ गलत लिखा है, सही पद ‘थेरीगाथा की भिक्षुणियां’ है, लेकिन गलत शीर्षक रखकर मैं बताना चाहता हूं कि बुद्ध ने मेरी स्त्रियां छीनी हैं। घर से बेघर करके और विवाह से छीनकर स्त्रियों को सन्यास वाली सामाजिक मृत्यु की भिक्षुणियों बनाना उसका धार्मिक अपहरण कहा जाना चाहिए।”
डॉ. धर्मवीर दलित/गैर दलित स्त्रियों की वैयक्तिक स्वतन्त्रता और उनके मौलिक अधिकार छीन कर उन्हें अपनी परिभाषा के अनुसार चलाना चाहते हैं। वे बुद्ध का दर्शन जो कि मैत्री, करूणा, समता और संवेदना पर आधारित है उसका खुल्लम-खुल्ला विरोध करते हुए कहते हैं, “इस देश को बुद्ध की ज़रूरत  नहीं है। दलितों को बुद्ध की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है। बुद्ध के लौटने की प्रार्थना करना सहीं नहीं है। वे अपने घर नहीं लौटे थे, तो देश में क्या लौटेंगे?  दलितो में क्या लौटेगें? बुद्ध को लौटना है तो पहले अपने घर लौटे। घर बारी  बने, पत्नी से प्यार करें, बच्चों को स्कूल भेजें और कबीर की तरह भगवान के गुण गाएं।” (धर्मवीर का बीज व्याख्यान) मैं धर्मवीर को बुद्ध विरोधी, अम्बेडकर विरोधी, प्रेमचन्द विरोधी चर्चा में न जाकर केवल दलित स्त्री विरोधी चर्चा में ही रहना चाहूंगी। डॉ. धर्मवीर “जारकर्म” का झण्डा दलित स्त्रियों पर गाड़ कर अपने आप पर गर्व करते हुए  कहते हैं कि   ” लेकिन आप   गर्व से कह सकते हैं कि परिवार से, समाज में, साहित्य में और कानून  में “जारसत्ता की खोज आप के धर्मवीर ने की है। आप अंग्रेजी में कह सकते हैं “IS THE FIIRST DALIT CONTRIBUTION TO THE WHOLE WORLD THINKING”  आगे वह और गर्वीले अंदाज में घोषणा करतें हैं “लोग मेरे इल्हाम से परेशान हैं। मुझे यह दैवी ज्ञान कैसे प्राप्त हो गया कि किस औरत के पेट में किस पुरुष का बच्चा है। लेकिन मैं इल्हाम से नीचे रहकर ही इस बात  को जानता हूं।”
डॉ. धर्मवीर यह मानने लगे हैं कि उनको दैवीय शक्ति प्राप्त हो गई है जिससे वह सभी दलित गैर दलित महिलाओं के भ्रूण परीक्षण कर लेगें। बुद्ध का विरोध करने वाले दलित
सौजन्‍य: गुगल
लेखक  ने आखिर ब्राह्मणवादी गढ्ढे में गिरकर अपना नैतिक पतन कर ही लिया। धर्मवीर के स्त्री विरोधी लेखन के हजारों उदाहरण दिए जा  सकते   हैं। अब सवाल है कि धर्मवीर प्रेमचंद के पीछे लट्ठ लेकर क्यों पडे हैं? उन्हे प्रेमचंद से क्या दुश्मनी है?
धर्मवीर जी को प्रेमचन्द इसलिए अप्रिय हैं क्योंकि प्रेमचन्द दलित स्त्री पात्रों को अधिक मानवीय, सहनशील, संघर्षमयी दिखाते हैं और दलित स्त्री लेखन भी प्रेमचन्द को नकारता नहीं है। वह उनकी खूबियों और कमियों को एक साथ स्वीकरता है। पिछले दस सालों से लगातार दलित महिलाएं शालीनता से लिख-लिखकर डॉ.धर्मवीर जी से अपनी बहस चला रही हैं। परन्तु डॉ. धर्मवीर उस शालीनता को ताक पर रखकर उनको निरन्तर चरित्रहीन, निठ्ठली, निकम्मी, आवारा, कामचोर, पेटपूजक और ना जाने किन-किन सम्बोधनों से नवाज़तें जा रहे हैं और उनके विरोध में ना तो दलित लेखक और ना ही दलित पत्रिकाएं कुछ कह रही हैं। तब दलित महिलाएं क्या करें? कहां जाएं?  चप्पल फेंक कर विरोध करना दलित महिलाओं के मन में जमा उनका अपने खिलाफ लिखा गया दलित साहित्य के प्रति उनका दुख है। दलित समाज द्वारा बरती जा रही उपेक्षा के साथ-साथ उनका चरित्रहनन  करने पर भी क्या दलित महिलाएं चुप बैठकर लिखती रहें? बिच्छू कितनी  बार काटेगा? आखिर आप कभी तो उसे अपने हाथ से हटायेगें?  कुछ दलित साहित्यकारों का मानना है कि विरोध करने से दलित आन्दोलन टूटेगा या फिर वे यह मानते हैं कि घर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए थी। पर जब घर में ही समस्या हो तो समस्या का निदान कैसे  होगा?   दलित साहित्यकारों से खुला प्रश्न है जिस आन्दोलन में पचास प्रतिशत समाज की हिस्सेदारी को नगण्य घोषित किया जा रहा है उसको जानबूझ कर उपेक्षित किया जा रहा है क्या वैसा आन्दोलन वास्तव में दलित आन्दोलन हो सकता है? क्या दलित आन्दोलन के आधार स्तम्भ समता, समानता, बंधुत्व नहीं होने चाहिएं? क्या उसमें सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘जारसत्ता’ से उत्पन्न चरित्रहनन की बात होगी? क्या दलित साहित्य दलित समाज की अन्य समस्याओं को छुऐगा भी नहीं? दलित महिलाओं के बारे में सोचते समय उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर केवल उनकी यौनिक्ता  के मुद्दे  ही क्यों चर्चा में लाए जाते हैं? दलित महिलाओं के संघर्ष का आज के दलित आन्दोलन में क्या स्थान है?  क्या दलित साहित्यकार अम्बेडकर,  बुद्ध, फूले का  बेबुनियादी विरोध करके भी दलित साहित्यकार कहलाने लायक है? ये साहित्यकार मानवता का दामन छोड़कर अमानवीय होकर दलित चेतना की वकालत आखिर कब तक करेगें? बहस खुली है। दलित स्त्रियां जवाब चाहती हैं। उन्हें अपनी अस्मिता और अस्तित्व की पहचान की रक्षा के लिए जवाब चाहिए। जो अपने आप को दलित साहित्यकार समझतें हैं, और जो धर्मवीर के स्त्री विरोधी लेखन का मौन और साथ रहकर समर्थन कर रहे हैं, दलित महिलाएं  उनसे  भी जवाब चाहती हैं अन्यथा धर्मवीर के साथ-साथ वो भी अपने आप को सवालों के कटघरे में खड़े देखेंगे। आने वाल समय  से साहित्यकारों को जिनका प्रगतिशील चिंतन से कोई वास्ता नहीं है, जो एक मूल मंत्र “अवसरवाद” को लेकर चल रहे हैं, उनको कभी माफ नहीं करेगा। और दलित स्त्रियां तो कभी माफ नहीं करेंगी। धर्मवीर तो मात्र प्रतीक हैं. जो भी धर्मवीर बनने की कोशिश करेगा दलित महिलाएं उस साहित्यकार और उसके लेखन का हर स्तर पर विरोध करेंगी चाहे वह विरोध किसी को आक्रमक ही क्यों ना लगे।
छात्र जीवन से ही दलित आंदोलन में सक्रिय अनीता भारती ने कुछ समय तक दलित पत्र ‘मूकनायक’ का संपादन किया व सामाजिक क्रांतिकारी गब्दूराम बाल्मीकि पर एक महत्त्वपूर्ण पुस्तिका लिखी. पत्र-पत्रिकाओं में दलित-आदिवासी महिलाओं के मुद्दों पर निरंतर विभिन्‍न विधाओं में लिखने वाली, पेशे से अध्‍यापिका अनीता ‘दलित लेखक संघ’ की महासचिव हैं. बिरसा मुंडा सम्मान, वीरांगना झलकारी बाई सम्मान, समेत कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानित अनीता से anita.bharti@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

" दलित महिला विरोधी डॉ. धर्मवीर? " को 6 प्रतिक्रियाएँ

  1. kuch log ye samj rahen hain ki dalit aandolan keval ve hi chala rahe hain apne niji vigyapan ke liye ambedkarvad aur dalit sahityakar hone ka dava thokne vale log andolan se jitna jaldi bahr ho jaye utna andolan ka bhala hoga ab jao aapne kafi nam paise kama liye andolan ke liye kam karnevalo ko kam karne do baki sab office main apni apni toli ke sath debate chalo .bhukho-nango ko ye debate kuch paka kar degi kya?
  2. अनीता जी…आपका लेख काफी संतुलित लगा. डा धर्मवीर अपने इस इलहाम से किसका भला कर रहे हैं…समझना मुश्किल है..
  3. अनीता जी, रजनी जी और दलित विमर्श से जुड़े कई साथी डॉ धर्मवीर की कुत्सित लेखनी पर कलम, आवाज़ और चप्पल उठा चुके हैं. जिनमें मैं ख़ुद भी शामिल हूँ (साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ के पन्नों पर कुछ माह पूर्व ही मैंने इस पर लिखा है). मुझे एक आश्चर्य ये है की अभी कुछ ही दिन पहले एक बहुत रसूखवाले कुलपति/साहित्यकार को, केवल एक शब्द पर माफ़ी मांगने पर मजबूर कर देनेवाले हिंदी समाज ने कभी इस तरह का दबाव धर्मवीर पर क्यों नहीं बनाया? अपने बच्चों को, उनकी माँ के सार्वजनिक चरित्रहनन द्वारा, ज़िल्लत देने वाले और महिलाओं पर कीचड़ उछालनेवाले इस बुध्हिजिवी की बुनियादी समझ पर ही सवाल उठाना चाहिए.
  4. k P maurya says:
    आपका आलेख पढ़ा . आपने लिखा हैं की डॉ. धरमवीर का जो दलित लेखक , पत्रकार , पत्र-पत्रिकायों के सम्पादक उनका विरोध नहीं करते वे डॉ. धरमवीर की सूचि में हैं , उन्होंने कुछ महिलों के बारे में गलत टिप्पड़ी की, उनका तर्क हो सकता है , इस पर सारे दलित लेखक या पत्रकार दोषी कैसे हो सकते हैं ? जिहोने अपने निजी स्वार्थ के चलते कुछ दलितों ने प्रेम विवाह किया, क्या वे सभी शादी के बाद अम्बेडकरवादी हो गए ? सभी बुद्धिस्ट हो गए ?? इससे उनका हित हो हुआ , लेकिन दलितों की आबादी कम हो गई ……….जनगड़ना में आर्क्छित सीटें कम हो गईं …. बौद्ध भी (हिन्दू , सिख बौद्ध) सभी आरक्चन के दावेदार हैं .यदि वे आरकछन का लाभ नहीं लेते तो सामान्य सूचि में आ जाते हैं उनकी अलग पहचान कैसे हुई .घाटा तो दलितों को ही हुआ ??? जिन दलित महिलाओं ने उच्च जाती में शादी की वे भी आरकछन का लाभ ले रही हैं ,,,,,,,,जिन उच्च पदों (आई ए एस/आई पी एस , डॉकटर , प्रोफेस्सर ,एन्गीनिअर आदि पर आसीन दलितों ने प्यार के चलते गैर -दलित (ब्रह्मण या वानियाँ ठाकुर आदि ) लड़की से शादी की .. उससे दुसरे दलितों को किया लाभ हुआ?? इसे बाद में आंबेडकर के सिधान्तों का रूप देना दलितों के साथ धोखा है ………हम (दलित ) तो जातिवाद मिटाना चाहते हैं लेकिन उच्च जाती के लोग तो नहीं ……….मान भी लें की दलित महिला या पुरुष जातिवाद मिटाने आंबेडकरवाद को स्थापित करने के लिए गैर -दलित से शादी कर रहे हैं तो ……..कितने ऐसे दलित महिला या पुरुष हैं जो अनपढ़ थे …..बेरोजगार थे , आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी ,, गैर – दलितों ने उन्हें अपनाया ??????????????????? कई प्रश्न हैं , जिनपर चर्चा होनी है ……….डॉ. धरमवीर या कोई दूसरा व्यक्ति अमानवीय बातें करे तो दलित या गैर -दलित कोई भी स्वीकार नहीं करेगा . भारतीय संविधान सभी को स्वतंत्रता देता है अपनी बात कहने की ………बोलने की …..कौन सहमत है .कौन नहीं यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है . इसमें सभी एकमत होंगे जरूरी तो नहीं ……….वैचारिक मतभेद हो सकते हैं ,, लेकिन मनभेद नहीं होने चाहिए ..
  5. aapne achhi janakariya dali hai, yeh patr samane aana chahiye tha,
  6. डॉ. धर्मवीर दलित साहित्‍य में बड़ा नाम हैं. उनकी लेखनी हमें हमेशा दृष्टि देती रही है. पर अनीताजी आपको पढ़ कर और जो कुछ डॉक्‍युमेंटरी प्रुफ़ आपने यहां दिया है, उनके आधार पर फिलहाल मैं बहुत दुविधा की स्थिति में हूं. इतना प्रगतिशील आदमी (धर्मवीर सिर्फ आदमी नहीं, एक सुलझे हुए व्‍यक्तित्‍व के स्‍वामी हैं) दलित औरतों के बारे में इस तरह के खयाल रखता है. और फिर दुनिया को पाठ पढाने निकलता है. फिर तो शंका वाजिव है. मैं सचमूच दुविधा में हूं अनीताजी. मैं तो चाहूंगा अगर धर्मवीरजी चाहें तो हम जैसे बहुत से दलितों और प्रगतिशील समाज का स्‍वप्‍न देखने वालों को इस स्थिति से उबार सकते हैं. उन्‍हें बस अपना पक्ष रख देना होगा यहां. मेरे खयाल से सरोकार एक अच्‍छा मंच है, जहां कायदे से बातचीत की गुंजाइश है.
    फिलहाल को यही कि अनीताजी आपने कुछ सवाल को छोड़ ही दिए हैं डॉ. साहब के प्रति. शायद यह अच्‍छा ही किया है आपने. आपका शुक्रिया.

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